बंदर का फोड़ा
अपने आते थे
खाते थे
और
चले जाते थे
और
जा कर
खिल्ली उड़ाते थे
……मुर्गी अच्छी फंसी
इसी लिए
आज-कल
अपनों को घास डालना छोड़ दिया है
अब बेगानों से यारी है
जिन्हें कम-से-कम एहसास तो होता है
कि खा रहे हैं
और वोह सोचते हैं
कि खा रहे हैं तो …..
नमक हलाली भी
करनी होगी
फिर यूं भी
बेगाने कुरेदते तो नहीं
कहते हैं
बन्दर को
फोड़ा (नासूर )
ना हो
वो मर जाएगा
अपने आयेंगे
हाल पूछेंगे
और फोड़ा …..
देखते-देखते
कुरेद-कुरेद कर
फोड़े से
ज़ख़्म बना देंगे
बन्दर बेचारा
रोक भी तो नहीं सकता
अपने हैं
हमदर्दी जता रहे हैं
और वो फोड़ा जो कुरेदते-कुरेदते ज़ख़्म बन चूका है
फाड़ फेंकेंगे
और बन्दर बेचारा मर जाएगा
मैं
मरना नहीं चाहता
किसी अपने ने
खा कर (दिल )
वायदा लिया था
कि
जब ‘मैं’ बेगाना बन जाऊं
तो आत्महत्या मत करना
हाँ
जब अपने कुरेदते हैं
तो
यूं लगता है
कि मैं
तिल-तिल कर मर रहा हूँ
अपनी मौत का सामान
खुद तय्यार कर रहा हूँ
और अपनी मौत का सामान तय्यार करना
आत्महत्या ही तो है
इसी लिए
मैं अपनों से दूर ………
बेगानों में पलता हूँ
कि
वो …..
कुरेद ना पायें