“बंदगी लिखूंगी”
तुम्हारा साथ मिले गर तो मौत को ज़िन्दगी लिखूंगी।
जंगल के सफर को भी जन्नत-ए-बाशिन्दगी लिखूंगी।
काफिर कहती है दुनियां ताउम्र मुझे परवाह नहीं ,
मां तेरे दामन और पिता के कदम को बन्दगी लिखूंगी।
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शशि “मंजुलाहृदय”