‘ बंगाली नानी ‘
ललिता अपनी दूसरी बेटी के जन्म से बहुत खुश थी…ससुराल से कोई नही आया सबके मुँह बने हुये थे , पति छुट्टी ना मिलने के कारण नही आ सके थे । बगल के बैड पर एक उम्रदार महिला का भी गॉलब्लैडर का ऑपरेशन हुआ था , बात करने पर पता चला की वो बंगाली हैं पति गुज़र गये हैं और जो उनकी देखभाल और खाना लेकर आते हैं वो उनके भाई हैं जिन्होंने बहन के विधवा होने पर विवाह ही नही किया । ससुराल से उपेक्षित ललिता का खाना भी अब इन्हीं महिला के भाई लाने लगे , दोनों महिलाओं में माँ बेटी जैसा रिश्ता कायम हो गया । ललिता और बंगाली महिला का पते का आदान – प्रदान हुआ… कुछ दिनों के बाद दोनों महिलाएं अपने – अपने घर आ गईं । एक महीने बाद ललिता उन माँ समान महिला का आभार प्रकट करने उनके घर गई….ललिता को दरवाजे पर ही रोक बंगाली महिला आरती की थाल लेकर आईं और बोलीं ‘ भला पीहर में लड़की बिना आरती के प्रवेश करती है ‘ बड़े ही प्यार से ललिता का गृह प्रवेश हुआ ललिता ने उनको माँ कह कर संबोधित किया , माँ शब्द सुन कर उन बंगाली महिला को जैसे जीवन मिल गया । वक्त गुज़रता गया दोनों बेटियां बड़ी हो गईं और बेटियों की बंगाली नानी बूढ़ी । जब भी ललिता दोनों बेटियों को लेकर बंगाली नानी के घर जाती बंगाली नानी तरह – तरह के बंगाली व्यंजन बनाती , बेटियों को सबसे ज्यादा पसंद था मिट्टी के मटके में रखे हुये सफेद चीनी के बूरे से ढ़के चमचम । जब तक बंगाली नानी जीवित रहीं ललिता का दूसरा पीहर बरकरार रहा । आज कितने बरस बीत गये बंगाली नानी को गये हुये किंतु ललिता के परिवार में सबकी यादों में बंगाली नानी आज भी जीवित हैं । कुछ रिश्ते ऐसे ही अनजाने में बन जाते हैं और जीवन भर अपनी मीठी यादों के साथ हमारे बीच रहते हैं ।
स्लरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 06/05/2021 )