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11 Dec 2016 · 4 min read

फौजी परिवार

वे दुःख भरे अनुभव फिर ताजा हो गये|मैं चार माह की गर्भवती थी,जब सियाचिन ग्लेशियर जैसे दुर्गम पोस्ट में इनकी तैनाती हुई|घर में पहली संतान की आमद होने को थी,घर में सब खुश थे|महीने में एक बार बड़ी मुश्किल से हम एक दूसरे की आवाज सुन पाते थे,क्योंकि तब एक तो मोबाइल इतने आम नहीं हुए थे और फिर सियाचिन से सम्पर्क साधना बड़ा ही दुष्कर होता था|पत्र दूसरा जरिया था जिसके लौट फेर का काल लगभग बीस पच्चीस दिन का होता था|खैर यह आम बात थी क्योंकि इसकी आदत पड़ गयी थी|सुन्दर भविष्य की कल्पना में सभी खुश थे तभी अचानक एक छोटी सी फिसलने की घटना ने मेरे सात माह के गर्भ के साथ साथ मेरे प्रथम बार माँ बनने के सपने को भी नष्ट कर दिया|अवर्णनीय दुःख था,पर उससे भी ज्यादा दुःख इस बात का था जो प्रथम बार पिता होने की आशा में दुर्गम परिस्थितियों में भी खुश हुआ जा रहा है,उससे बात कैसे हो और अगर बात हो तो उसे कैसे यह सब बताया जाय|अश्रुधारा में भीगी हुई मुझे बड़ों ने समझाया कि यदि ग्लेशियर से फोन आये तो कैसे इस बात को उससे छुपाये रखना है क्योंकि वह विषम परिस्थितियों मे रह रहा है तुम यहाँ परिवार के साथ हो और रो कर अपना दुःख हल्का कर सकती हो वैसे भी दो माह बाद वह ग्लेशियर से नीचे आ जायेगा तब पता चल ही जायेगा|यकीन जानिये यह बात आज लिखना जितना सहज लग रहा है उस समय इस अनुभव को जीना एक अपरिपक्व मन के लिए सियाचिन की पथराती ठंड को झेलने से भी अधिक दुष्कर था|खैर समय सब घाव धीरे धीरे भर देता है|तीन वर्ष उपरान्त फिर खुशियों ने अंगड़ाई ली सब दुःख भूल गये जब प्यारी सी बिटिया ने घर में कदम रखा|मोबाइल फोन की कृपा से इन तक तुरन्त यह खुशखबरी पहुँच गयी|पिछली सारे दुखों की भरपायी करने के मन से इन्होंने मुझसे वादा किया कि वह बेटी के नामकरण में अवश्य छुट्टी लेकर घर पहुँचेंगे दुःख में भले न साथ रह पाये पर खुशी दोनों साथ मिलकर मनायेंगे|मैं भी बड़ी खुश थी अगले दिन नामकरण था पर शाम आठ बजे तक इनका कुछ अता पता न था|खैर बड़ी देर बाद इन्होंने फोन उठाया और बोले छुट्टी की कोशिश कर रहा हूँ कल तक जरूर पहुँच जाउँगा,दिमाग को पता चल रहा था पर मन मानने को तैयार नहीं था,सो यकीन कर उम्मीद करने लगी|सारे रिश्तेदार,मेहमान आ गये थे मेरी नजरे बार बार दरवाजे की ओर जाती थी,उनका फोन स्विच ऑफ आ रहा था|मुहुर्त का समय निकलता जा रहा था,आखिर पंडित जी ने इनका फोटो मँगवाया और रिश्ते के देवर का हाथ लगवाकर नामकरण की सभी विधियाँ पूर्ण करवायीं|मेरी पहली संतान का नामकरण था,बेहद खुशी का अवसर था पर आँसुओं को नहीं समझा पायी|इनकी फोटो के साथ पूजा में बैठी मुझे दुःख और गुस्सा दोनों आ रहा था|दुःख इस बात का कि बचपन में सुना था कि फौजियों की तो शादी भी फोटो से होती है पर आज इस हकीकत को मैं और मेरी नन्ही सी बेटी दोनों साक्षात अनुभव कर रहे थे|यकीन जानिए मैं केवल उस अनुभव के बाहर से आप को घुमा पा रही हूँ,उस अनुभव को भीतर से देखने का प्रयास आप सब को अश्रुसरिता में डूबो देगा|मुझे गुस्सा इस बात का था कि ठीक है ये नहीं आ पाये लेकिन इन्होंने फोन भी स्विच ऑफ करके रखा है कम से कम बात कर लेते तो भी सहारा मिल जाता|समय अच्छा हो या बुरा बीत जाता है,यह भी बीता|शाम को आठ बजे फोन की घंटी बजी इनका नम्बर था नाराजगी अब भी थी फोन नहीं उठाया |घंटी फिर बजी,रहा न गया |
“हैलो” “हैलो नमस्ते भाभीजी! मैं दिनेश बोल रहा हूँ” “जी नमस्ते” मन आशंकित हो गया जैसा कि ऐसे अवसरों पर हर फौजी की बीवी का हो जाता है अपने को संभाला|”भाभीजी जरा भय्या से बात कर लो कल से इसने कुछ नहीं खाया है|बहुत कोशिश की लेकिन छुट्टी नहीं मिल पायी|दिन भर कहता रहा एक वादा किया था वह भी नहीं निभा पाया|फौजी को तो शादी ही नहीं करनी चाहिए,खुद तो कैसे भी जी ले पर जिसे ब्याह कर लाया उसकी खुशियों का गला घोटते रहना पड़ता है|सुबह से ऐसी ही ऊल जुलूल बातें किये जा रहा है|ऐसे उदास हताश मैंने इसे कभी नहीं देखा|मैंने कहा तू घर पर बात कर ले तो थोड़ा हल्का महसूस करेगा|बोला कैसे करूँ,क्या कहूँ और फोन स्विच ऑफ कर के रख दिया|अभी बड़ी मुश्किल से इसे समझाया तब इसने मुझे फोन दिया लो अब आप ही बात करो|”हैलो” ‘साँय साँय सी आवाज’, “हैलो,ठीक तो हैं आप|” सुबकने की आवाज|दिल धक सा कर गया खुद पर बहुत ही ग्लानि हुई एक वीर सिपाही आज तुम्हारी खातिर रो रहा है|वह वार्तालाप लगभग आधा घंटा चला लेकिन जिसमें एक भी शब्द नहीं था केवल सुबकने,सिसकियों और धड़कनों की आवाजें थीं कान पर लगे मोबाइल अदृश्य हो गये थे हम एक दूसरे के कन्धों पर सर रखे हुए एक दूसरे को हौंसला बंधा रहे थे|नन्ही बेटी की किलकारी ने इस क्रम को झकझोरा वहाँ से पहला शब्द फूटा “चल तू बच्ची को देख,मैं अब ठीक हूँ”मैंने हूं से अधिक कुछ नहीं कहा|
लेकिन ये अन्त नहीं है|एक फौजी और उसके परिवार में ऐसे अनगिनत अवसर आते हैं,पर वे इसे आम जीवन की तरह निभाते हैं क्योंकि उन्हें स्वदेश रक्षा का खास काम जो करना होता है
जय हिन्द जय जवान??
✍हेमा तिवारी भट्ट✍

Language: Hindi
1 Comment · 334 Views
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