फैसला
फैसला
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गांव में आज खूब उत्साह था।आज ताजिया चौक पर रखी जाने वाली थी।
गांव में केवल छ: घर हिंदुओं के थे।मुसलमानों के लगभग दो सो घर थे।लेकिन एक गांव में हिंदू परिवार कभी परेशान नहीं हुआ ।सब मिलजुलकर ही रहते थे,यहांँ तक कि बाहर जब भी साम्प्रदायिक तनाव हुए,मुस्लिमों ने कवच की तरह हिंदू परिवारों की रक्षा की।दोनों वर्ग आपसी भाईचारे की मिसाल थे।होली,दीवाली,ईद,बकरीद मिलजुलकर ही मनाते थे।एक दूसरे के सुख दु:ख में शामिल होते।
दुर्भाग्य से रमई के इकलौते बेटे की अचानक हुई मौत ने समूचे गांव को जैसे लकवा मार दिया हो।ढोल ताशों का शोर ठप हो गया।सारा उल्लास मातम में बदल गया।
अब सबके सामने प्रश्न ताजिया को लेकर था।तब गाँव के युवाओं ने इस बार ताजिया न रखने का फैसला किया।कुछ विरोध के स्वर उठे भी ,लेकिन उन युवाओं के जबाब कोई नहीं दे सका कि यदि आज रमई काका के बेटे की जगह हममें से किसी का इंतकाल हो जाता तब आप सब क्या करते?
सभी को जैसे सांप सूंघ गया। भीड़ में मरघट जैसा सन्नाटा छा गया।
तब भीड़ से एक नौजवान उठा और बोला-हमनें फैसला कर लिया है।संकट की इस घड़ी में काका को अकेला नहीं छोड़ सकते।काका ने अपने बच्चे जैसा प्यार हमें दिया है।
किसी के लिए कोई पाबंदी नहीं है,जो जैसा चाहे करे।मगर एक भी नौजवान त्योहार नहीं मनायेगा।
किसी ने कोई विरोध नहीं किया।गाँव के बुजुर्ग रमई काका के साथ उनके बेटे के अंतिम संस्कार की रूपरेखा बनाने में लग गए।
रमई काका निहाल से हो गये।उन्हें बेटे की मौत का गम कुछ हल्का लगने लगा।
#सुधीर श्रीवास्तव