फेरे में
इसका – उसका, उनका -किनका
अहर्निश तेरे – मेरे में
इंसान को इल्म है अब भी नहीं
के फँसा है वो किस फेरे में
रैन में चैन गँवा बैठा है
सोच के दुनियादारी को
आंख का परदा कभी न गिरता
नहीं नजर लगे अय्यारी को
कारी अँधियारी, कारा मन लेकर
पहुंचेगा कहाँ वो सवेरे में
इसका – उसका, उनका -किनका
अहर्निश तेरे – मेरे में
इंसान को इल्म है अब भी नहीं
के फँसा है वो किस फेरे में
कलुषित मन पर कारा हिय
जिसमें सब कुछ है कारा -कारा
हुंकार भरा है मद ने फिर से
कह डाला है विश्व हमारा
समय पर साथ कोई न रहता
सन्नाटा होता है डेरे में
इसका – उसका, उनका -किनका
अहर्निश तेरे – मेरे में
इंसान को इल्म है अब भी नहीं
के फँसा है वो किस फेरे में
कौन साथ है, कौन नाथ है
विपदा में हाथ में कौन हाथ है
मतवारा बन फिरता है मन
अंतस में भयावह उत्पात है
उलझा है साया भी अबतो
रिश्तों के घनघोर अँधेरे में
इसका – उसका, उनका -किनका
अहर्निश तेरे – मेरे में
इंसान को इल्म है अब भी नहीं
के फँसा है वो किस फेरे में
-सिद्धार्थ गोरखपुरी