फूल /गुल
दो मुक्तक….
फूल ने फूल हमको बनाया हि था l
गुलसिता में जो गुल मुस्कुराया हि था ll
हाथ से पांव तक फूलने से लगे l
देख माली ने डंडा उठाया हि था ll
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फूल सा मुख तेरा क्यों ए फूला हुआ l
गुलबदन नूर मुखडे का गुल सा हुआ ll
क्या हुआ जो मुहल्ले कि बत्ती है गुल l
अपने गुलशन में तुझसे उजाला हुआ ll
संजय सिंह ‘सलिल’
प्रतापगढ उत्तर प्रदेश l