फूल, /कूल /शूल /मूल /धूल
एक बात तो सत्य है, खिलकर झरते फूल।
दुर्दिन आतें ही सभी, हो जाते प्रति कूल।।
आज मित्र व्यवहार में, छिपा कपट का शूल।
कीट -सर्प अब सेवते, मानवता का मूल।।
उजड़ रही कुसुमित धरा, बचे हुए हैं शूल।
बंजर भू परती पड़ी, पवन उड़ाता धूल। ।
-लक्ष्मी सिंह
-नई दिल्ली