**फूलों सा सुन्दर गांव मेरा है**
**फूलों सा सुन्दर गांव मेरा है**
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जहां पशु पक्षियों का बसेरा है,
फूलों सा सुन्दर गांव मेरा हैं।
कोयल मधुरिम गान सुनाती है,
जहां पुरवाई सुहानी आती है,
शुद्ध वायु भरा उगता सवेरा है।
फूलों सा सुन्दर गांव मेरा है।
भोले भाले लोगों का जमघट है,
साफ सुथरे जल का पनघट है,
साधु संतो का बगल में डेरा है।
फूलों सा सुन्दर गांव मेरा है।
भाई चारा जिंदाबाद जहां,
सुख शांति खुशी खुशहाली वहां,
जहां छू पाता नहीं अंधेरा है।
फूलों सा सुन्दर गांव मेरा है।
गोरी गौरी खेले गलियों में,
घुंगरूं बाजे बैलों की टलियो में,
खुद ईश्वर का जहां पर फेरा है।
फूलों सा सुन्दर गांव मेरा है।
फल फूलों भरी क्यारी न्यारी,
भू को छूती है अंबिया की डारी,
नभ ने इंद्रधनुषी रंग बिखेरा है।
फूलों सा सुन्दर गांव मेरा है।
मनसीरत खुश्बू भरी है मिट्टी में,
शहरी बातें लिखते यही चिट्ठी में,
जुड़ता कुनबा सारा बहुतेरा है।
फूलों सा सुन्दर गांव मेरा है।
जहां पशु पक्षियों का बसेरा है।
फूलों सा सुन्दर गांव मेरा हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)