फुटपाथ
8. फुटपाथ
इलाहाबाद के फुटपाथ पर वह तोड़ती पत्थर , लिखते समय निराला को नही था ये भान ।
कि आधुनिक भारत के निर्माता करेंगे ,
उनकी कविता का इतना सम्मान ।।
देश के हर शहर मे , गॉव मे ,
गली मे , ठॉव मे ,
हरदम दिखाई देंगी ।
पत्थर तोड़ती औरतें ,
और उनकी गोद मे होंगे ,
दम तोड़ते बच्चे ।।
भय भूख भ्रष्टाचार ,
शोषण गरीबी अत्याचार |
इन सबको ढूढ़ने के लिए ,
पलटनी नहीं पड़ेंगी किताबें ।
इनसे प्रतिबिंबित होंगी ,
सामंती अट्टालिकाओं की
घुमावदार मेहराबें ।।
नींवों मे जिनकी दफन होगा ,
अतीत का इतिहास ।
और शीर्ष पर दिखाई देगा ,
भविष्य का अट्टहास ।।
वर्तमान को झोंककर ,
भविष्य की भट्टी मे ।
चारों तरफ पाओगे ,
खून ही खून विनाश ही विनाश ।।
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प्रकाश चंद्र , लखनऊ
IRPS (Retd)