फीके रंग
ये रंग उदास से लगने लगे हैं ,
मानों की तुम्हारे जाने से फीके पड़ने लगे हैं ,
मुस्कुराना मेरी मज़बूरी बन गयी है ,
हसने का सबब तो तुम्हारे साथ ही चला गया ,
देखो लोग होली खेल रहे हैं चारों तरफ रंगों की बौछार है ,
आंखे तुम्हें ढूंढ रही हैं ,
तुम अब नहीं आओगे दिल ये ज|नता है लेकिन फिर भी तेरी सूरत का जो नक्श आँखों में जा बसा है ,बस यही नक्श धुंधला नहीं होता , बाकि ये रंग बिरंगे उजाले मुझे धुंधले बेढब लगने लगे है ,
हाँ मुझे ये रंग फीके से लगने लगे हैं |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद ‘