फिर से नही बसते है वो दिल
फिर से नही बसते है वो दिल
जो एक बाद दिल की नियत से उजड़ जाते है
कद्र कितनी भी सजा लो गालिब
अंदर से जिंदा कोई बाहर नही आता
फिर से नही बसते है वो दिल
जो एक बाद दिल की नियत से उजड़ जाते है
कद्र कितनी भी सजा लो गालिब
अंदर से जिंदा कोई बाहर नही आता