फिर से तन्हा ek gazal by Vinit Singh Shayar
मैं पहले की तरह फिर से तन्हा हो गया यारो
सुबह सुबह मेरा उनसे झगड़ा हो गया यारो
घटा के बिन नहीं मुमकिन है ये बरसात कैसे हो
हमारे बीच मुहब्बत की कोई शुरुआत कैसे हो
ये दिल उम्मीद का दामन क्यों ऐसे छोड़ देती है
वो मुझको देख के मुखड़ा क्यों ऐसे मोड़ लेती हैं
मिलेगा क्या भला उनको मुझे ऐसे सता करके
बुलाती हैं मुझे खाने पे बर्तन को बजा करके
की थी एक दुआ जो जाके अब वो रंग लाई है
सुबह सुबह वो लेकर चाय मेरे पास आई हैं
~विनीत सिंह