फिर सात दोहे ।
बुधवार स्वतन्त्र दोहे —
—————-फिर सात दोहे—————
फूक फूक चलना सदा,, भूल एक पर्याप्त ।।
राम मॄत्यु का कटघरा, चौतरफा है व्याप्त ।।
विनय नम्रता सादगी ,सत्य सरस व्यवहार ।
सदाचार सदभाव का,,,, ऋणी रहा संसार ।।
मन की खायीं विषभरी, झांझर झरती बूंद ।
निज तन भींगे दुख सहे, तड़पे आँखे मूँद ।।
धन्य वही नर नागरिक, ज्ञानी या मतिमन्द ।
देख पड़ोसी की ख़ुशी , मिले जिसे आनंद ।।
सुख के दो दिन बाद में, दुख का है परिवेश ।
पुनः सुखों की चाह में ,,,,,,देह रह गयी शेष ।।
एक अवस्था वृद्ध की,,,माया बढ़ती जात ।
मायारूपी मृत्यु के , सम्मुख है भय खात ।।
घाव मिले यदि शत्रु से , छोड़ सभी अपवाद ।
बदला है तो लीजिये,,,,चाहे दो दिन के बाद ।।
©©राम केश मिश्र