** फिर लौटकर मैं इस जहां ना आऊंगा **
मेरी यह रचना मेरी स्वैच्छिक सेवानिवृति 13.7.17 तक मेरे साथ रही उस दिवंगत आत्मा श्रीमती मनीषा कुमारी अध्यापिका को समर्पित है जिनका असामयिक निधन सड़क दुघटना में चोटग्रस्त होने के कारण 16.8.17 को प्रातः महज 37 वर्ष की आयु में हो गया । परमपिता परमेश्वर दिवंगत आत्मा को परमगति,परम् शांति प्रदान करें ।
श्रद्धांजलि स्वरूप गीत
17.8.17 ** दोपहर ** 2.05
जिंदगी ऐ जिंदगी बन मेरा तूं हमसफ़र
जिंदगी ऐ जिंदगी बन मेरा तूं हमसफ़र
मैंने कितना तुझे अपने साथ है भगाया
तूने मुझको क़दम-क़दम पर है जगाया
मेरी आदत है संगसंग तुझे भगाने की
मैं मुसाफ़िर हूं ये कभी ना माना मैंने
आनाजाना है जहां-मुसाफ़िर की तरहा
क्यूं समझ बैठा अपना पक्का ठिकाना
आज-तक कोई टिका,किसका ठिकाना
जिंदगी ऐ जिंदगी बन मेरा तूं हमसफ़र
जिंदगी ऐ जिंदगी बन मेरा तूं हमसफ़र
मौत आये जबतलक साथ निभाना मेरा
मरने पहले तूंयूं मुझसे रुसवा ना होना
लोग कहते ना रहे अभी तो जिन्दा था
मेरी जिन्दा लाश को देखकर लोग कहे
कहते रहे अभी तक जिन्दा था बेचारा
मैं बनू ना फ़लसफ़ा जिंदगी का ऐसा
लोग दोहराए और मैं मर- मर जाऊँ
जब तलक जिन्दा हूं बेवफ़ाई ना करना
वरना मरने से पहले ही मैं मर जाऊंगा
फिर चाहे लाख अफ़सोस करे ये दुनियां
फिर लौटकर मैं इस जहां ना आऊंगा
जिंदगी ऐ जिंदगी बन मेरा तूं हमसफ़र
जिंदगी ऐ जिंदगी बन मेरा तूं हमसफ़र।।
?मधुप बैरागी