फिर भी मोदी-मोदी!!
*19 मई 2019 को लोकसभा चुनाव खत्म हुआ और तमाम टीवी चैनलों के एक्सिट पोल में बस मोदी सरकार के फिर एक बार बहुमत में आने की संभावना जताई जा रही थी. लब्बोलुआब यह कि सारा टीवी-मीडिया मोदी-मोदी का राग अलाप रहा था. उस समय मेरे मन में जो विचार उमड़-घुमड़ रहे थे, बस उन्हें बस शब्द देने की मेरी कोशिश इस लेख में है. *
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान साहब अपनी चुनावी प्रचार सभाओं में कहा करते थे-‘अगर राजनीतिक माद्दा है तो महंगाई 48 घंटे में कम हो सकती है.’ इसके लिए वे बकाया तीन प्रमुख उपाय भी बताते थे-1. वायदा बाजार खत्म करना 2. महंगाई राहत कोष की स्थापना करना 3. आयात-निर्यात नीति का त्वरित क्रियान्वयन करना. साहब की इन बातों पर मैं भी यकीन करने लगा था. लेकिन आप गवाह हैं कि उनके सत्ता में आने पर भी खाद्यान्न वस्तुओं और पेट्रोल के दामों में किस तरह वृद्धि निरंतर होती रही, 60 रुपए किलो वाली तुअर दाल तो हमें वर्ष 2015 में पूरे सालभर 180 रुपए किलो खरीदनी पड़ी. महंगाई कम करने के अपने उन तीन उपायों का साहब ने तब कोई इस्तेमाल नहीं किया. वर्ष 2014 में साहब और उनके गुरु रामदेव बाबा कहते थे कि अगर वे अर्थात मोदी जी सत्ता में आते हैं तो जहां पेट्रोल 35 रुपए लीटर मिलने लगेगा, वहीं डॉलर और रुपए की कीमत बराबर हो जाएगी. हुआ क्या, यह सच्चाई सब जानते हैं. साहब जब मुख्यमंत्री हुआ करते थे, तब वे और उनकी मंडली कहा करती थी-‘जीएसटी कभी सफल नहीं हो सकती है, यह देश के संघीय ढांचे और राज्य की स्वायत्ता के खिलाफ है.’ लेकिन जनाब जब प्रधानमंत्री बने तो जीएसटी को देश की दूसरी आजादी बताते हुए आधी रात को ही संसद का अधिवेशन बुलाकर जश्न मना लिया और चार स्लैब वाला महाघातक जीएसटी कानून लागू कर दिया. 2014 के पहले साहब, विदेश में कालेधन को देश में लाने का वायदा करते हुए कहते थे कि विदेश में देश का इतना कालाधन है कि अगर उसे यहां लाया जाए तो प्रत्येक नागरिकों के खाते में यूं ही 15-15 लाख रुपए आ जाएंगे. उन्हें रामदेव बाबा ने विदेश में कालेधन रखनेवालों की एक लिस्ट भी दी थी. लेकिन जनाब विदेश से कालाधन लाने की बजाय देश के अंदर ही कालाधन तलाशने लगे और देश में नोटबंदी लागू कर दी जिसके तहत बैंकों में लाइन में लगकर सैकड़ों लोगों को जान से, तो लाखों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा. साहब जब मुख्यमंत्री थे तब आधार कार्ड का विरोध करते थे, विरोध ही नहीं मजाक उड़ाया करते लेकिन जब वे सत्ता में आए और एक दिन संसद में जब वे ‘आधार’ का बखान करते हुए यह बता रहे थे कि उन्होंने किस तरह आधार से जोड़कर लोगों को सब्सिडी आम लोगों के खाते में पहुंचाना शुरू किया है. जब कांग्रेस की एक महिला नेत्री रेणुका चौधरी को उनकी इस दोगलाई बात पर हंसी आ गई और अट्ठहास कर बैठीं तो मोदी साहब ने इशारों-इशारों में उनकी तुलना शूर्पणखां से कर दी. पहले साहब एफडीआई अर्थात देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को देश की आर्थिक गुलामी बताते थे जब वे सत्ता में आए तो विदेश का दौरा-दौरा कर विदेशी कंपनियों को ‘मेक इन इंडिया’ के नाम पर निवेश के लिए आमंत्रित करने लगे. इतना ही नहीं और अधिक से अधिक एफडीआई लाने अपनी महान जादुई उपलब्धि बता रहे हैं. हालांकि ध्यान यह रहे, तमाम विदेश दौरों और उनके इवेंट शो के बाद इसमें में कामयाब नहीं रहे. 2012 में जब वर्धा में ‘निर्मल भारत अभियान’ को तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने री-लांच किया था, तब मोदी साहब ने इसका मजाक उड़ाया था और इसे दुनिया में देश की इन्सल्ट करना बताया था और कहा था दुनिया क्या कहेगी कि भारत इतना गंदा है. अब खुद जब पीएम बने तो स्वच्छता अभियान का डंका पीट रहे हैं. दिन-रात टेलीविजन पर इसका विज्ञापन चलता है. जब ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ फिल्म बनी थी तब भाजपा के अनुुषंगी संगठनों ने इस फिल्म का विरोध यह आरोप लगाकर किया था कि यह फिल्म दुनिया में भारत की छवि करने वाली है लेकिन उनके सत्ता में रहते जब अक्षय कुमार ने ‘टॉयलेट : एक प्रेमकथा’ बनाई तब यही मंडली इस फिल्म की वाहवाही में जुट गई. क्या फिर इस फिल्म से देश की इन्सल्ट नहीं होती. ‘अच्छे दिन आनेवाले हैं’ के अलावा इनका और एक बहुप्रचारित नारा था- सबका साथ, सबका विकास. लेकिन इन पांच सालों में आपने देखा कि किस तरह समाज के कमजोर वर्गों और मुसलमानों को इनकी अनुषंगी संगठनों ने विभिन्न बहानों से निशाना बनाकर प्रताड़ित किया. युवाओं को प्रतिवर्ष 2 करोड़ नौकरियां देने का वायदा किया था लेकिन नौकरियां देने की तो बात दूर उल्टे नौकरियां छीन लीं. स्टार्टअप और मुद्रा लोन के तहत लोन बांटने संबंधित प्रचारित तथ्य सत्य से कोसों दूर है. इस तरह हर मुद्दे पर फेल होने वाली सरकार के अगर फिर वापस होने की संभावना व्यक् त की जा रही है तो मुझे घोर आश्चर्य हो रहा है.
मैं पहले केवल संदेह करता था लेकिन मुझे अब लगभग यकीन होने लगा है कि साहब ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले उड़ी हमला, सर्जिकल स्ट्राइक फिर नोटबंदी और अब लोकसभा चुनाव के पहले पुलवामा अटैक, फिर उसके बहाने पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक षड्यंत्र के तहत किया गया जिससे पब्लिक में ‘नकली राष्ट्रवाद’ का उन्माद भरकर वोटों की खेती की जा सके. आप जरा पीछे मुड़कर मोदी-शाह और उनके चेले-चपाटों के भाषण सुनिए तो उनके भाषण का 40-50 प्रतिशत इसी फर्जी देशभक्ति पर आधारित रहता था. फर्जी देशभक्ति का यह मुद्दा इनकी हिंदू-मुस्लिम राजनीति को भी बल देती है. मुझे लगता है लोगों ने इसी फर्जी राष्ट्रभक्ति की भावनाओं में बहकर वोट दिया होगा, अन्यथा कोई कारण नहीं कि फिर यह मोदी-मोदी का राग जनता अलापे. इस आम चुनाव की सबसे बड़ी त्रासदी निर्वाचन आयोग का पक्षपात रवैया रहा. भारतीय चुनाव के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ.
-20 मई 2019 सोमवार