फिर पांच दोहे ।
बादल/ घन मेघ
सूरज डूबा था नही,,,,,,,दोनों मद मे चूर ।
भिगो रहे थे धूप को, बादल निष्ठुर क्रूर ।।
बादल पंछी बन चुने,,,,,,,,, तारे सारी रात ।
आसमान की डाल पर,, बैठ करे बरसात ।।
व्यथा धरा की देखकर,,,घन बरसे घनघोर ।
बिजली नेह बिछोह से, तड़प रही चहुँओर ।।
ओढ़ कपासी मेघ नभ,, सूरज करे शिकार ।
इंद्रधनुष को देखकर, भावुक हुआ बिमार ।।
हरियाली हँसने लगी , पुष्पित जीवन जीव ।
तृप्त हुये वन,बाग़ सब, नदियां हुई सजीव ।।
राम केश मिश्र
सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश