फिर न आए तुम
सुमन उपवन में खिले
जब मुस्कुराए तुम
बांसुरी सी बज उठी
जब गुनगुनाए तुम
हाथ में कंगन सुनहले
कान में कुंडल रुपहले
रूप में इस पहले-पहले
मन को भाए तुम
रूप का श्रृंगार लेकर
दृगों में अभिसार लेकर
लाज की दीवार लेकर
निकट आए तुम
रूप का जादू चला कर
मिलन की आशा जगा कर
हृदय को मेरे चुरा कर
फिर न आए तुम