फिर तीन दोहे।
फिर तीन दोहे –
मन को पावन राखिये, तन सा निर्मल आप ।
धन का सदुपयोग कर,,,,,,,,,,दूर रहे संताप ।।
निर्धन धन का लालची, भले कृपण कंजूस ।
धनी न सोहत धर्म से ,,,,,,क्यों लेता है घूस ।।
रिस्तों में जब स्वार्थ हो,,, तो कैसा अफ़सोस ।
राम मिलेगा प्रेम से,,,,,,, ही निज को सन्तोष ।।
राम केश मिश्र