फिर एक बार 💓
फिर एक बार
दिसम्बर के घने कोहरे सी तुम्हारी याद
लिपटी है मेरे मन से, हो जैसे रेशमी शाल
गुलाबी सुबह की नर्म सुर्य- रश्मियां
अक्सर, छेड़ जाती हैं मेरे अनकहे जज़्बात
सुर्ख गुलाब जब महक अपनी बिखेर देता है
ठंडी हवाएं मदमस्त कर जाती हैं गुलों को
सुने रस्ते पुकार उठते हैं खोल नयनों के द्वार
आंसुओं से बोझिल पलकें, नहीं सोयीं कई रातों से
जी भरता ही कहां है,उन सपनों की मुलाकातों से
जाने फिर ये मुलाकात हो ना हो,हम साथ हो ना हो
सुनो, फिर एक बार*,
ये दिसंबर बहुत सर्द हो चला है
जैसे जम के सो चुके तुम्हारे सारे जज़्बात
लेकिन, दिल को अब भी ये यकीं है
सुबह की नर्म धूप संग सर्द हवा के झोंके
छेड़ ही जायेंगे तुम्हारे मन के तार
फिर एक बार,*
आयेगी तुम्हें भी याद, वो पल-छिन,वो साथ
तब सुनायी देंगी तुम्हें मेरी सिसकियां
ये बीतता दिसंबर भीगा जायेगा मन का हर कोना
जैसे ओस की बुंदों से तरबतर ये लम्बी रात
हां , फिर एक बार।।
©️®️ पल्लवी रानी
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