फिक्र
रूह जब आँखों में
झलकता है,
खुबसूरती ख़ुशबू
बन महकती है !
दिल की ख़ुशबू
अनजानी होती है,
गुलों ने शायद-
बनाया नही इन्हें !
इश्क़ की धुन
समझ जाएँ तो
यह मर्ज़ नही
बन सकता !
चाहत की
इन्सानी दख़लंदाज़ी ,
इश्क़ में
दरकिनार हो जाती है ।
इश्क़ करना
सिख ले अगर
फिर खुदा की
फ़िक्र बेमानी है ।
नरेन्द्र