फागुन आया झूमकर, लगा सताने काम।
फागुन आया झूमकर, लगा सताने काम।
गोरी को लखने लगे, बुढ़ऊ गिरे धड़ाम।।
बुढ़ऊ गिरे धड़ाम, उठाने दौड़ी गोरी।
बना न कोई काम, प्रीति की छिपी न चोरी।।
भाषत भारतभक्त, नशा मधुऋतु का छाया।
लगा सताने काम, झूमकर फागुन आया।।
© महेश चन्द्र त्रिपाठी