फाकाकशी की जिंदगी
वर्मा जी टकटकी लगाए टी.वी. पर समाचार सुन रहे थे। उनकी धड़कनें तेज थी। कहीं इस बार भी जज महोदय ने पीजीटी शिक्षकों के परीक्षा परिणाम जारी करने के फैसले के लिए अगली तारीख दे दी तो? यह प्रश्न वर्मा जी का हलक सूखाने के लिए काफी था। क्योंकि पीजीटी शिक्षकों के इंटरव्यू हुए लगभग एक साल बीत चुका था। बंसल महोदय ने ‘हरियाणा स्कूल टीचर सिलेक्षन बोर्ड’ के चेयरमैन के चयन और शिक्षकों के चयन में अनियमितता और धांधली को लेकर कोर्ट में केस दायर कर दिया था। बंसल जी के प्रमाणों के आधार पर कोर्ट ने शिक्षकों की चयन लिस्ट जारी करने पर रोक लगा रखी थी। तभी से हिन्दी के लगभग नौ हजार भावी शिक्षकों की सांस अटकी हुई थी। इंटरनेट, फेसबुक और समाचारों पर पीजीटी शिक्षकों की खबर आम हो गई थी।
वर्मा जी के लिए यह फैसला सरकार के पक्ष में आना खास अहमियत रखता था। उन्होंने अक्तूबर 2008 में पहली बार लागू किए गए ‘स्कूल टीचर इलिजिबलिटी टेस्ट (पात्रता परीक्षा)’ को पास कर दिया था। इस टेस्ट को पास करने के उपरांत शिक्षा बोर्ड द्वारा सर्टिफिकेट दिया जाता था। इसकी अवधि पांच वर्ष निर्धारित की गई थी। यदि पाँच वर्ष तक किसी को नौकरी नहीं मिलती तो यह सर्टिफिकेट मात्र रद्दी का टुकड़ा बनकर रह जाएगा।
पहली बार सरकार ने पीजीटी शिक्षकों के लिए 2012 में लगभग 14 हजार रिक्त पदों के लिए आवेदन मांगे थे। इसमें हिन्दी पीजीटी के लिए सत्रह सौ पद थे। वर्मा जी को अब पूरी-पूरी उम्मीद थी कि उनका चयन सरलता से हो जाएगा। इसलिए अंतिम तिथि से पूर्व ही उन्होंने आवेदन कर दिया था।
1 अप्रैल को करनाल के रेस्ट हाउस में उनका इंटरव्यू सम्पन्न हुआ। इंटरव्यू में मात्र दो सदस्य थे। इनमें एक सामान्य ज्ञान विशेषज्ञ तथा दूसरा हिन्दी विषय का विशेषज्ञ था। इंटरव्यू में पूछे गए सभी प्रश्नों का वर्मा जी ने सही-सही उत्तर दिया था। इसलिए उन्हें अपने चयन का पूरा यकीन था। दूसरी ओर वे यह भी जानते थे कि हरियाणा में किसी भी नौकरी को पाने के लिए राजनीतिज्ञों की जी-हुजूरी जरूरी है। लेकिन वर्मा जी किसी की जी-हुजूरी के पक्षधर नहीं थे। उन्हें अपनी योग्यता और अपने इष्ट देव पर पूरा विश्वास था। वे सुबह और शाम दोनो वक्त अपने इष्ट देव के मंदिर में दीया जलाना नहीं भूलते थे।
‘कोर्ट ने पीजीटी शिक्षकों के चयन पर लगी रोक हटा दी है।’ इस समाचार को सुनकर वर्मा जी की बांछे खिल गई थी। अब उनकी जान में जान आई थी।
वर्मा जी फटाफट अपने घर से बाहर निकले। बाहर शर्मा जी खड़े थे। उन्होंने वर्मा जी को बधाई देते हुए कहा-‘वर्मा जी, अब तो मुँह मीठा करवा दो। कोर्ट ने सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है। अब तो जल्दी ही ‘लिस्ट आउट’ हो जाएगी और ————।’
‘शर्मा जी सही कहते हो। अब ‘लिस्ट आउट’ होने का इंतजार है बस। लिस्ट में नाम आते ही सबसे पहले आपका ही मुँह मीठा करवाऊँगा।’ वर्मा जी ने बात बीच में काटते हुए कहा।
‘ठीक है वर्मा जी। जहाँ एक साल इंतजार किया है, वहाँ एक सप्ताह और सही। लेकिन मिठाई तो खाकर ही रहूँगा।’ षर्मा जी ने अपने जगप्रसिद्ध मजाकिया अंदाज में कहा और चले गए।
आज 1 जनवरी 2014 का दिन था। आज पीजीटी हिन्दी की ‘लिस्ट आउट’ होनी थी। वर्मा जी का दिल धक-धक कर रहा था। पता नहीं क्या होगा। मेरा सिलेक्शन होगा या ——-। नहीं-नही, मुझे अपने इष्ट देव पर पूरा विश्वास है। मैं जरूर सिलेक्ट हो जाऊँगा। वर्मा जी अभी सोच ही रहे थे कि अचानक उनका फोन घनघनाया। वर्मा जी ने हड़बड़ाहट में फोन रिसिव किया।
‘हैलो वर्मा जी। मैं अनिल बोल रहा हूँ। जल्दी से अपना अनुक्रमांक बताओ। हिन्दी की लिस्ट आउट हो गई है।’ दूसरी तरफ से आवाज आई।
‘क्या! लिस्ट आउट हो गई है। सज्ज्न भी यहीं होगा न।’ वर्मा जी ने दबे स्वर में कहा।
हाँ-हाँ वर्मा जी सज्जन भी यहीं है। जल्दी से अपना अनुक्रमांक बताइए।’ अनिल ने उत्साहित होते हुए कहा।
‘13018922 है मेरा अनुक्रमांक। जल्दी देख कर बताओ। मेरा तो कलेजा बैठा जा रहा है।’ वर्मा जी ने आतुर होते हुए कहा।
अनिल का फोन आए हुए दस मिनट से ऊपर बीत चुके थे। वर्मा जी के मन में तरह-तरह के विचार आ रहे थे। पता नहीं क्या हुआ होगा। अब तक तो जांगड़ा जी का फोन आ जाना चाहिए था। आज तकनीकी युग है। पलक झपकते ही सारी सूचनाएँ आँखो के सामने हाजिर हो जाती हैं। फिर अनिल जी इतनी देर क्यों लगा रहे हैं, समझ नहीं आ रहा है। मैं ही फोन करके पूछ लेता हूँ। मैंने फोन मिलाया। अनिल जी की उदास आवाज आई-‘साॅरी वर्मा जी। आपका सिलेक्षन नहीं हुआ।’
‘क्या? मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ।’ इतना कह कर वर्मा जी ने फोन काट दिया। उनकी आँखों से गंगा-जमना बहने लगी। उन पर मानो वज्रपात हुआ हो। काटो तो खून नहीं वाली स्थिति हो गई थी उनकी। वे किंकर्तव्यविमूढ टकटकी बांधे शून्य की ओर निहारने लगे। वे मानो जड़ बन गए थे। उनके चेहरे पर उदासी का आलम था। उनके घर में मातम सा छा गया था। वे निष्प्राण से दरवाजे के सहारे लग कर खड़े हो गए थे। उनके सारे सपने धूल-धूसरित हो गए थे। अब उन्हें अपना जीवन निरर्थक सा प्रतीत होने लगा था। वे अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेना चाहते थे। लेकिन अपने मासूम बच्चों का ख्याल करके वे ऐसा कदम नहीं उठा सके। अब उन्हें अपना भविष्य अंधकारमयी प्रतीत हो रहा था। अक्तूबर 2013 में ‘स्कूल टीचर इलिजिबलिटी टेस्ट (पात्रता परीक्षा)’ सर्टिफिकेट की अवधि भी समाप्त हो गई थी। उम्र भी 36 का आंकड़ा पार कर चुकी थी। अब पुनः पात्रता परीक्षा देनी होगी। उसके बाद न जाने कब ‘वेकेंसी’ आएंगी। आएंगी भी या नहीं यह भी एक यक्ष प्रश्न था। तब तक मैं षायद ‘ओवर ऐज’ हो चुका हूँगा। सात-आठ हजार रूपये की कमाई से आज की आसमान छूती महँगाई में बच्चों की परवरिश् कैसी होगी? माँ-बाप का लेक्चरर बनाने का सपना अब पूरा होगा या नही? राजनेताओं की तिजोरियां तो भर गई होंगी लेकिन किसी के घर आज काली दीवाली मनाई जा रही थी, ये सफेदपोष क्या जानें! क्या बसंल महोदय ने कोर्ट में सही याचिका दायर की थी? क्या नौकरियाँ सिफरिशों और मोटी रकम की बपौती बन कर रह गई हैं? ऐसे अनसुलझे सवालों में घिरे वर्मा जी फाकाकशी की जिंदगी से दो-चार होने के लिए विवश हो गए थे।