” फाउंटेनपेन और स्याही “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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सुंदर और लिखने की कला प्रायः शिथिल पड़ती जा रही है ! बदलते हुए परिवेश में इसकी प्रथिमकता को हम नजर अंदाज करने लगे हैं ! परन्तु आकर्षक लिखावट को देख हमें मलाल अवश्य होने लगता है कि काश ! हमारी भी लिखावट अच्छी होती ! कभी -कभी हम सोचने लगते हैं कि अब तो हम उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुँच गए हैं ! आनेवाली नयी पीढ़ियों को सुधारेंगे ! पर आने वाली पीढ़ियाँ हमारा ही अनुशरण करती है ! हमें भी सजग और प्रयत्नशील बनना होगा ! हमें भी सीखना पड़ेगा ! बच्चे बड़ों का ही अनुशरण करते हैं ! युग बदलता गया ..बच्चों के हाथों में नए नए आधुनिक कलम थमाने लगे जिसके अनियंत्रित फिसलन से हमारी लिखाबट का स्वरुप ही बदल गया ! हमें ज्ञात है कि इन आधुनिक कलमों से हमारी लिखावटें अधिकांशतः दयनीय हो जातीं हैं ! फिर भी इन बातों पर विद्यालयों के ध्यान जाते नहीं हैं ! अच्छी लिखाबट का अस्त्र .
……फाउंटेन पेन …..और स्याही भी बाजार से लुप्त होतीं जा रहीं हैं !…. पर अभी भी कुछ हम कर सकते हैं !….. आधुनिक कलमों के साथ -साथ हमें पारंपरिक फाउंटेन पेन इस्तमाल करना चाहिए और इन कार्यों के लिए समस्त व्यक्तिओं के योगदानों को शिरोधार्य करेंगे …आभार !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
दुमका