फ़ानी है दौलतों की असलियत
ख़ुमारी अगर सहर तक न रहे,
शराब में शब जाया क्या करना।
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गर वो ही न पढ़ें, नज़्म हमारी,
अख़बार में साया क्या करना।
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उनसे मिलना कभी होगा नहीं,
तो लम्स का वादा क्या करना।
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फ़ानी है दौलतों की असलियत,
ज़माने से तक़ाज़ा क्या करना।
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परवाज़ भरो तो आसमां तक हो,
बादलों तक इरादा क्या करना।
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कहो तो सही, जुस्तुजू किसकी है,
दरम्याने-रिश्ता इशारा क्या करना।