” फसलें खूब धुली इस बार ” !!
पानी ने सब पानी फेरा ,
फसलें खूब धुली इस बार !
हाथ सभी के खाली खाली ,
वाह रे खूब करी करतार !!
आँखों में कुछ दिवास्वप्न थे ,
उनकी बारातें छूटी !
हम तरसेंगे दाना दाना ,
ऐसी किस्मत है रूठी !
दाना दाना हम सहेजते ,
छिन गया अपना चैन करार !!
रोटी पर लें प्याज मिर्च हम ,
अपने छप्पन भोग यही !
साहूकार बैंक के खाते ,
दे दो हिस्से , यही सही !!
सींचेगें फिर वही पसीना ,
जो अभी अभी गया बेकार !!
बारिश कम धरती फटती है ,
चाक हमारा सीना है !
अतिवृष्टि की मार पड़े जब ,
विष तुषार का पीना है !
अपने काँधे हल जोतें हम ,
अन्नदान का देंय उपहार !!
नया बीज है , नई उम्मीदें ,
थोड़ा थोड़ा सब बांटें !
बाद पेट की सोचगें हम ,
खेतों को यों लहरा दें !
देती है भरपूर हमें माँ ,
कैसे भूलें यह उपकार !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )