फलसफा,
जहां भी गया वहीं पर किनारा हुआ,
अफसोस यह है कोई न हमारा हुआ,
इंतज़ार जिसका था मुझे दिलों जा में,
वो शख़्स किसी और का सहारा हुआ,
यह सच है प्यार मुक़म्मल नहीं हुआ,
मैं भी उसे देखकर घायल नहीं हुआ,
लब की तिश्नगी में मदहोश हुए कितने,
थी सामने बैठी वो मैं पागल नहीं हुआ।