*फ़र्ज*
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फ़र्ज
कोहराम मचा है ऐसा
बस दहशत ही दहशत है
यह दो वक्त की सांसे हैं
इन पर कब किसका हक है।
हाथ उठा और दुआ कर
अपनेपन का फ़र्ज अदा कर
मन्नत मांगे जो तू रब से
उसमें सब की ख्वाहिशों पर गौर कर।
किसकी जिंदगी किसके हाथ
कौन कब दे किसको मात
बैठे बिठाये चल जाए
कब कौन सी चाल
हम सबका बस एक ही दाता
कभी ना कोई उससे जीता ।