फर्ज़ अदायगी (मार्मिक कहानी)
बिहार के छोटे से अंचल का एक छोटा सा गांव मंगरौना जहां रामू और श्याम का एक ही बस्ती में घर था. दोनो साथ ही खेलते कूदते और बगल के गांव में जो स्कूल था वहाँ पर एक साथ पढ़ने जाते थे. दोनो में धीरे धीरे दोस्ती भी हो गई और अब वे दोनो पक्के दोस्त भी बन गए थे. श्याम जहाँ अमीर घड़ का लड़का था वहीं रामू बेहद सामान्य घर का लड़का, उसकी माँ खेती बाड़ी कर किसी तरह अपने परिवार की जीविका चलाती थी. बचपन में ही रामू के सर से पिता का साया उठ गया था और घर की जिम्मेदारी उसकी माँ के कंधो आ गई थी. बेचारी अनीला खेती मजदूरी कर बमुशकिल अपना परिवार चला लेती थी लेकिन अपने बच्चे रामू को स्कूल पढ़ने जरूर भेजती थी.
श्याम के पापा जगदीश सरकारी नौकरी करते थे और घर मे भरपूर धन परिवार सुखी संपन्न रहता था. उसकी पत्नी सुनिता कुशल गृहिणी थी और अपने परिवार का भरपूर ख्याल रखती थी. शयाम को पढ़ने लिखने की भरपूर सुविधा दे रही थी ताकी आगे चलकर उसका बेटा बहुत बड़ा अधिकारी बन सके. गांव के स्कूल से पांचवी तक पढ़ने के बाद श्याम का दाखिला दरभंगा शहर के बड़े स्कूल जिसस मैरी स्कूल में करवा दिया गया. क्योंकि जगदीश का तबादला शहर के सरकारी कार्यालय में हो चुका था. अब तो मानो शयाम के माता पिता को अपने बच्चे को आगे बढ़ाने का बहुत अच्छा अवसर मिल गया था. श्याम पढ़ने में बहुत ही तेज था और वह खूब मन लगाकर पढाई करता रहता. स्कूल की वार्षिक परीक्षा में भी वह टाॅप कर रहा था. सीबीएसई बोर्ड की परीक्षा में श्याम ने बहुत अच्छे अंकों से बारहवीं पास कर लिया. वह सिर्फ छुट्टीयों में ही अपने गांव मंगरौना आता जाता रहता था लेकिन अपने दोस्त रामू से जरूर मिलता था और खूब खेलता एवं पढ़ाई लिखाई के चर्चे करता रहता.
ईधर रामू गांव में ही रहकर पढाई कर रहा था और खेती बाड़ी में अपनी माँ का हाथ बँटाता रहता. रामू के लिए शहर मे पढ़ना किसी सपने जैसा ही था. घर की माली हालत भी अच्छी नहीं थी की वह शहर पढ़ने के लिए जा सके. ग़रीबी हाल में भी अनीला अपने बच्चे को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती थी. इसलिए रामू भी खूब मन लगाकर पढाई कर रह था और उसने भी दसवीं की परीक्षा फस्ट डिविजन से पास कर लिया था. लेकिन आगे की पढाई के लिए आर्थिक स्थिति जवाब दिए जा रहा था. लेकिन अनिला ने हिम्मत करते हुए रामू के पढ़ाई के खातिर अपने गहने बेचकर रामू का नामांकन जिले के आर. के काॅलेज में करवा दिया ताकी वह आगे की पढ़ाई कर सके. खेती बाड़ी के काम काज करते करते अनीला बहुत कमजोर हो गई थी. उपर से रामू के पढाई के खर्च का चिंता भी मानो उसे खाए जा रहा था. गरीबी के कारण रामू बहुत मुश्किल से इंटर तक पढ़ाई कर पाता है. घर परिवार की मजबूरी देखकर रामू आगे पढ़ने का सपना छोड़कर परदेश कमाने दिल्ली चला जाता है.
श्याम अपनी उच्च शिक्षा के लिए दरभंगा से दिल्ली चला गया और उसके पापा ने डी यू के प्रतिष्ठित काॅलेज हंसराज काॅलेज मे उसका नाम लिखवा दिया. अब वह स्नातक की पढाई के साथ प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी भी शुरू कर दिया था. श्याम के पापा उसके पढाई का खर्चा भेजते रहते और छुट्टीयों में आकर उससे मिलते भी रहते थे. श्याम को सुविधा में कोई कमी नहीं थी और वह पूरे मन लगाकर तैयारी करने लगा था. कई प्रतियोगिता परीक्षा मे वह बैठ रहा था लेकिन अभी सफल नहीं हो पाया. स्नातक अंतीम वर्ष की परीक्षा दे चुका था ईधर कुछ दिनो बाद आयकर अधिकारी की परीक्षा देनी थी. यही सोचकर श्याम पूरे मन से तैयारी कर रहा था.
रामू अब परदेश कमाने दिल्ली आ गया था लेकिन नौकरी के लिए दर दर की ठोकरें खा रहा था. गाँव के लड़के को शहर बड़ी मुश्किल से ही नौकरी मिलती है. मेहनत मजदूरी के अलावा और कोई विकल्प भी तो नहीं था. थक हारकर वह फैक्ट्री में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करने लगा. छोटी मोटी नौकरी मे बड़ी मुश्किल से गुजाड़ा कर पाता लेकिन वह अपनी माँ को पाँच सौ या हजार रुपए मनीआर्डर जरूर भेज देता है. ताकी माँ को घर चलाने में दिक्कत ना हो. धीरे धीरे रामू शहर की आबो हबा में अपने लिए अच्छे रोजगार की तलाश में लग गया. ईधर गाँव में अनिला अब बहुत बिमार रहने लगी है. एक दिन गाँव से फोन आया की वह बहुत बिमार है ईलाज के लिए दरभंगा के बड़े अस्पताल जाना होगा लेकिन ईलाज के लिए पैसे कहाँ से लाऊँ? तुम कुछ पैसों का इंतजाम कर भेज दो. बिमार माँ को देखने रामू का मन मचल उठता है और फौरन गांव जाने की सोचता है. लेकिन माँ के समझाने पर की अगर वह गाँव आया कहीं नौकरी चली गई तो फिर घर कैसे चलेगा? ईससे अच्छा की तुम पैसों का इंतजाम कर भेज दो ताकी मैं अपना ईलाज करवा सकूं. इतना सुनकर वह गाँव आने का विचार छोड़कर पैसों के इंतजाम में जुट जाता है.
ईधर श्याम ग्रेजुएशन फस्ट डीविजन से पास कर चुका है. उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा उसके घर वाले भी काफी खुश हैं. मम्मी पापा दोनो ही अपने बेटे की सफलता पर फूले नहीं समा रहे. उसके पापा जगदीश ने फोन पर पूछ ही लिया की आयकर परीक्षा वाला क्या हुआ? श्याम ने बताया की आयकर अधिकारी की परीक्षा दे चुका हूँ बहुत ही अच्छा रहा. दो महीने बाद उसके रिजल्ट आने वाले हैं जल्दी ही वो खुशख़बरी आपको बताउँगा. उसकी बाते सुनकर जगदीश उसे खूब चाबस्सी देता है और आज अच्छा खाना खाकर दोस्तों संग इंज्वाई करने की बात कहता है. श्याम खुशी खुशी कुछ अच्छा खाने की सोचकर पास के ही लकी ढाबे की तरफ आगे बढ़ता है. ईधर माँ की बिमारी की चिंता रामू को खाए जा रही है. उसने मालिक ठीकेदार सभी से मदद मांगी लेकिन किसी ने एक न सूनी सिर्फ इतना कहा की महीने पूरे होने पर ही तनखाह मिलेगी.
माँ की ईलाज के लिए पैसों की चिंता में रामू हैरान रहने लगा. फैक्ट्री से थका हारा घर लौट रहा था उपर से पैसे इंतजाम ना होने की वज़ह से वह बेहद परेशान है. आखिर थक हारकर वह सोचता है की थोड़ी चाय पी लूं शायद टेंशन कम हो जाए. यही सोचकर चाय पीने वह ढ़ाबे की तरफ जाता है. वहाँ पहुँचते ही रामू की मुलाकात अचानक शयाम से हो जाती है. शयाम खाने की मेज पर बढिया खाना खा रहा होता और अचानक उसकी नज़र रामू की ओर पड़ता है वह अपने बचपन के दोस्त को पहचान लेता है और ईधर आने की कहकर रामू को पुकारता है. अवाज़ सुनकर रामू उधर की तरफ देखता है तो उसे श्याम दिखाई पड़ता है. पहले तो उसे यकीन ही नहीं हुआ की उसके बचपन का दोस्त दिल्ली मे मिल जाएगा. नजदीक आकर दोनो एक दुसरे के गले मिले. दोनो ख़ुशी से फूले न समा रहे थे. दोनो ने एक दूसरे का हाल चाल जाना और अपने बारे में बताया. शयाम ने रामू को खाना आफर किया लेकिन उसने सिर्फ चाय पीउँगा इतना सा कहा. शयाम ने हँसते हुए कहा लो तो फिर तुम चाय ही पिओ और मैं भरपेट खाना खाता हूँ.
रामू को उदास और ना हँसते देख श्याम को मन ही मन शंका हुआ कहीं उसका दोस्त किसी परेशानी में तो नहीं हैं. इतने दिन बाद उसले मिला हूँ पर वह ज्यादा हँस बोल नहीं रहा कोई तो बात होगी? बचपन में हम दोनो कितने हँसते खेलते थे लेकिन अब इसे क्या हुआ जो उदास है. आखिरकार श्याम ने रामू स् पूछ ही डाला कोई परेशानी है तो खुलकर बताओ. रामू ने घबराते हुए सारी बात बताई और माँ के ईलाज के लिए कुछ मदद करने की बात कही. श्याम ने उसे दिलासा दिलाया तुम्हारी माँ को कुछ नहीं होगा मैं तुम्हारी मदद जरूर करूँगा. शयाम उसे अपने साउथ एक्स. वाले फ्लैट पर अपने साथ ले आता है और अपने पढ़ाई वाले रूपयों में से दस हजार मदद के तौर पर देकर दिलासा देते हुए कहता है की बाद में मुझे लौटा देना. रामू भी श्याम का धन्यवाद करते हुए ये भरोसा दिलाता है की मैं ये पैसे मेहनत मजदूरी कर जरूर लौटा दूंगा. अगली सुबह वह अपनी फैक्ट्री मालिक से दस दिन की छुट्टी लेकर माँ के ईलाज के लिए दरभंगा होकर अपने गाँव पहुँचता है. गाँव पहुँचकर रामू दरभंगा के बड़े हाॅस्पीटल जीवन ज्योती नर्सिंग हाॅस्पीटल मे अपनी माँ का ईलाज करवाता है. उसके बाद धीरे धीरे अनीला स्वस्थ होने लगती है और घर का काम काज संभाल लेती है. माँ के ठीक हो जाने पर रामू अपने दोस्त शयाम को फोनकर खूब धन्यवाद देता है और मन ही मन उसके सलामती के लिए ईश्वर से प्रार्थना भी करता है. माँ के ईलाज के बाद रामू फिर परदेश कमाने दिल्ली वापस लौट जाता है.
ईधर श्याम की मेहनत रंग लाई और आखिरकार वह आयकर अधिकारी के रूप में चयनित भी हो जाता है. दिल्ली में ही उसकी पहली पोस्टिंग होती है. घर परिवार में खुशी का माहौल है. दिन खूब अच्छे से बितने लगे. अब उसके मम्मी पापा छुट्टीयों में दिल्ली घुमने आए हैं. शयाम ने अपने मम्मी पापा को दिल्ली के लाल किला, इंडिया गेट, कुतुब मिनार, सी पी सहित सभी दर्शनीय स्थलों की सैर करवा रहा था. वे लोग भी बेहद खुश थे. एक दिन अचानक घर लौटैते वक्त रोड एक्सीडेंट हो गया जिसमें जगदीश घायल हो गया और सुनिता को काफी चोट आई और बेहद हालात गंभीर थी. शयाम ने फौरन उन सबको अपोवो हाॅस्पीटल में एडमीट करवाया. जगदीश तो ठीक हो गया लेकिन सुनीता की हालत बेहद नाजुक थी. डाॅक्टर खून चढ़ाने की बात कह रहे थे. ओ पोजेटीव ग्रुप का खून ब्लड बैंक से भी नहीं मिल रहा था. श्याम के खून का टेस्ट लिया गया जो बी पोजीटिव था. जगदीश का ए माइन्स. श्याम बेहद परेशान था आखिरकार अपनी माँ को कैसे बचाएँ? इस अजनबी शहर मे कौन देगा खून? यही सब सोच श्याम ने अपने रिशतेदारों से भी संपर्क किया लेकिन सभी दूसरे शहर में थे. सबने ब्लड बैंक की बात कही. उसने थक हारकर अपने दोस्त रामू को फोन लगाया लेकिन वो भी ऑफ बता रहा था. अब श्याम बेहद परेशान था क्या करूँ क्या ना करूँ? बाहर बरामदे पर ब्लड बैंक वाले को फोन कर रहा होता है.
रामू गांव से दुबारा वापस दिल्ली कमाने लौटता है लेकिन रास्ते में उसका मोबाईल चोरी हो जाता है. ईधर कंपनी की नौकरी भी चली जाती है. अब काम काज की तलाश में वह फिर धक्के खाने लगता है. थक हारकर वह हास्पीटल में सफाई कर्मी की नौकरी पकड़ लेता है. रामू हाॅस्पीटल का गलियारा साफ कर रहा होता है अचानक उसे किसी के फोन पर बात करने की बात सुनाई देता है जो उसे बिल्कुल शयाम की तरह लगता है. नजदिक जाकर देखता है तो वह शयाम ही रहता है. रामू के अवाज़ देने पर उसे यकीन ही नहीं हो रहा की उसे उसका दोस्त मिल रहा है. दोनो गले मिले श्याम ने अपनी परेशानी बताई. रामू फौरन खून देने को तैयार हो गया. संयोग से डाॅक्टरों ने टेस्ट में रामू का खून ओ पोजीटिव ही पाया और सुनीता को खून चढाकर उसकी जान बचाई. दो चार दिन मे सुनीता बिल्कुल ठीक हो गई. तब तक रामू अपनी नौकरी करते हुए श्याम के साथ उसकी माँ की सेवा में भी लगा रहा.
श्याम की माँ अब बिल्कुल ठीक हो चुकी थी. अस्पताल से आज उसकी छुट्टी होने वाली थी. जगदीश सुनीता को अपने फ्लैट पर आराम के लिए ले जाने आया था. श्याम के आँखों मेम खुशी के आँसू थे की उसके माँ की जान बच गई. रामू ने फौरन खून देना स्वीकारा जिस कारण सुनीता बच पाई. श्याम ने अपने दोस्त रामू को पास बुलाया और उपहारस्वरूप कुछ पैसे देने चाहे. लेकिन रामू ने मना करते हुए कहा की मेरे दोस्त तुम्हारे मदद के कारण ही गाँव मे मै अपनी माँ का ईलाज करवा कर उसकी जान बचा पाया. आज मैं दोस्ती की फर्ज़ अदायगी कर तुम्हारी माँ की जान बचाने में छोटी सी मदद करने की केशीस की है बस. श्याम ने रामू से गले मिलकर उसका पीठ थपथपाते हुए कहा की आज तुमने अएन वक्त पर हमारा बहुत उपकार किया है. रामू ने भी कहा श्याम तुमने भी उस दिन अएन वक्त पर हमारी मदद कर बहुत उपकार किया था. रामू और श्याम की बातें सुनकर जगदीश और सुनीता ने दोनो का पीठ थपथपाते हुए कहा की तुम दोनो ने दोस्ती की फर्ज़ अदायगी कर सच्ची दोस्ती की लाज रख ली है.
लेखक :- डाॅ. किशन कारीगर
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