फकीरे
काँसे सी खाली अंजुरि में, मैं बस आँसू ही भर पायी।
मुझको करना माफ फकीरे, तुझको प्यार नहीं कर पायी।।
मुझे लगा था अपनेपन से, कानन को नंदन कर दूँगी।
मैं खुशियों की मानस पुत्री, मरुथल में जीवन भर दूँगी।
मुझे हृदय के खंडहरों में, जीवन युक्त दिया रखना था।
सूनी दहलीजों के ऊपर, खुशियों का सतिया रखना था।
लेकिन मैं मन के आंगन से, वीरानियत नहीं हर पायी।
मुझको करना माफ फकीरे, तुझको प्यार नहीं कर पायी।।
नंदन में विकसित कलियों को, किसी और आँगन खिलना था।
खुशियों की मानस पुत्री को, कोई भाग्यवान वरना था।
जो तेरे मन से निर्वासित, दिए और ही कहीं जलेंगे।
जिस द्वारे पर उतरे दुल्हन, सतिए भी अब वहीं रखेंगे।
तेरे लगन बँधे हाथों पर, अपने हाथ नहीं रख पायी।
मुझको करना माफ फकीरे, तुझको प्यार नहीं कर पायी।।
सुनो ! क्षमा कर देना मुझको, होनी को तो होना ही था।
पथ ने जो पाथेय दिया था, चलते चलते खोना ही था।
माना कभी नहीं मिटती हैं, बीती यादें, सुखद कल्पना।
लेकिन तुम मन की देहरी पर रचना कोई और अल्पना।
मैं मलाल ये खत्म करूँगी, क्या करना, क्या ना कर पायी।
मुझको करना माफ फकीरे, तुझको प्यार नहीं कर पायी।।
© शिवा अवस्थी