प्रौढ़ बालक
लघुकथा
प्रौढ़ बालक
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परिस्थितियों का मारा रतन बाल्यावस्था से तरुणावस्था और युवावस्था के बजाय सीधे प्रौढ़ावस्था में कदम रखने को विवश था।
पिता और मां के बीच टकराव और एक दूसरे को नीचा दिखाने की जिद ने परिवार का माहौल बिगाड़ दिया। जिस समय उसे मां की ममता और पिता का प्यार मिलना चाहिए, उस समय उसे उपेक्षा संग जीने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा था।
पिता की अकर्मण्यता और असंवेदनशील कार्यशैली में अब तो मां बेटे की जान को भी खतरा सा महसूस होने लगा।
आखिर में रतन ने मां के साथ घर छोड़ना ही उचित समझा और समय, परिस्थिति के अनुसार माँ के साथ खुद के भविष्य का ताना बाना बुनते और सपनों को पूरा करने की ख्वाहिशों ने उसे समय से बहुत पहले ही प्रौढ़ ही नहीं जिम्मेदार भी बना दिया।
आज रतन के लिए पिता का कोई मतलब नहीं रह गया, क्योंकि पिता का दायित्व उसने अपने कंधों पर जो रख लिया था। समय पूर्व प्रौढ़ जो बनने लिए विवश हो गया था।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उत्तर प्रदेश
© मौलिक, स्वरचित