प्रेरणा :-
किसी को सुनाई दे या न दें मुझे तो सुनाई देती हैं।
बैचैन दीदी की वो दुःख की आहें मुझे तो सुनाई देती हैं।
कोई लाख समझे मै दूर हूं किन्तु हर पल यह मन करीब है मगर पास हर क्षण न रह सकूं यह तो मेरा नसीब है।
कैसा अनोखा अपना यह रिश्ता बन्धन ही जिसका अजीब है।
मन की अमीर हैं हम दोनों बहना भले धन से गरीब है।
मुझे प्रेरणा की श्रद्धा प्रतिमा हर पल दिखाई देती है।
बैचैन-
मुझे गम नहीं की क्यों दूर हो तुम मेरे पास आ न पाई मजबूर हो तुम।
मेरी आंख का दीदी वो नूर हो तुम।
मेरी जिंदगी का सबसे अच्छा दस्तूर हो तुम।
मेरी ज़िंदगी की रेखा की ये रचनाएं मुझे तो रुला ही देती हैं।।
किसी को सुनाई दे या न दे मुझे तो सुनाई देती हैं।