प्रेरक — दोहे !
(१) रूप रंग एक सा वाणी दे पहचान।
कोकिल सु मधुर गात है काग की कर्कश तान ।।
(२) आए इस संसार में लेकर मानव रूप।
कड़वी बोली गरल सी मीठी निर्मल कूप।।
(३) मेहंदी रंग देश है सजते गोरे हाथ।
कोयला छू के देख ले सब कारा हो जात।।
(४) गुरु वचन गंभीर है देना उस पर ध्यान।
सीख जिनको भली लगे जग में पाए सम्मान।।
(५) पोथी मिलती ज्ञान की सुसंगत की ठौर।
नाहक भटकता क्यों फिरे रे मन चारों ओर।।
(६) मठ मंदिर खोजत फिरा मिले न कहीं भगवान ।
दीन हीन दर पे खड़ा किया न कभी सम्मान ।।
राजेश व्यास अनुनय