प्रेरक कथा ‘बोल का मोल’
विजय और कैलाश दो दोस्त थे, दोनों ही आपस में घनिष्ट मित्र थे। परंतु कुछ बातों को लेकर उनमें आपस में कुछ मतभेद रहता था। विजय जहाँ जमीनी हकीकत से जुड़ा व्यक्ति था और परिणाम देने पर ज्यादा यकीन करता था, बजाय दिखावटी बातें करने के। वहीं इसके बिलकुल विपरीत कैलाश जमीनी हकीकत से परे केवल बातें ही करता था, परंतु उसके प्रति क्रियान्वयन की कोई चाह नहीं रखता था। विजय हमेशा समाज-सुधार हेतु कुछ न कुछ कार्य करता था, वहीं कैलाश केवल दिखावे पर ज्यादा जोर देता था।
एक दिन कैलाश ने सोशल मीडिया पर सक्रियता दर्शाते हुए, एक मैसेज पोस्ट किया। जिसमें कुछ इस प्रकार लिखा था-‘इस त्योहार पर हम सब स्वयं पर पैसा खर्च न करके उन पैसों से असहाय और अनाथ बच्चों की मदद करें, उन्हें मिठाइयाँ, खिलौने एवं कपड़े इत्यादि वितरित करें। इस तरह से उनके घरों में त्योहार से खुशियों का दीपक जलाएँ।’ विजय उसके मैसेज को पढ़कर काफी प्रभावित हुआ, वह अपने मित्र को संकीर्ण और हवा-हवाई विचारों वाला समझता था। आज उसके मैसेज ने उसके हृदय में उसके लिए एक परिवर्तन रैली निकाल दी।
विजय भाव-विभोर होकर अपनी सोच को कोसते हुए सोचने लगा, कि मै निहित ही गलत था उसके बारे में संयोगवश विजय भी दीवाली पर कुछ इस तरह के कार्य करना चाहता था, लेकिन वह समय से पहले किसी को कुछ बताना नहीं चाहता था, परंतु फर्क केवल इतना था कि कैलाश ने अपने विचार को कार्यशैली में लाने से पहले ही उस लेख के कारण खूब वाह-वाही बटोरी। फिर भी विजय खुश था कि इस बार उसका मित्र भी इस भलाई कार्य में उसके साथ होगा।
मगर विजय को कहीं न कहीं अभी भी कुछ अदृश्यकारी संदेह था, उसने इसी संदेह को अपने विचारों में समेटकर कैलाश से पूछा-‘‘इस त्योहार पर क्या करने वाले हो?’’
जब कैलाश ने विजय को जवाब दिया तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। कैलाश ने चेहरे पर मुस्कराहट लाते हुए कहा-‘‘कौनसा कार्यक्रम? मैं तो परिवार सहित बाहर घूमने जा रहा हूँ।’’
विजय ने उस बात का संज्ञान किया, उसके लिए विस्मयकारी स्थिति प्रकट हो चुकी थी और उसके हृदय में उसके मित्र के प्रति चलने वाली परिवर्तन रैली का गहन विरोध हुआ। अदृश्यकारी संदेह बार-बार हिलोरे ले रहा था।
विजय ने फिर पूछा-‘‘तो फिर वो सोशल मीडिया पर जो मैसेज पोस्ट किया था, उसका क्या मतलब था?’’
कैलाश ने कहा-‘‘ये सब तो मेरे पास कहीं से आया था, सो मैंने आगे फॉरवर्ड कर दिया। इसमें तुम इतना नाराज क्यों हो रहे हो?’’
विजय ने अकेले ही तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार अनाथ व असहायों के साथ त्योहार मनाया और जो कल तक कैलाश की वाह-वाही कर रहे थे उन्हें भी उसकी हवा-हवाई बातों का ज्ञान हुआ। अब वे विजय के कार्य को प्रोत्साहन दे रहे थे और वहीं दूसरी ओर कैलाश को उसके जैसा करने की नसीहत भी।
मनोज अरोड़ा
लेखक, सम्पादक एवं समीक्षक
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