प्रेयसी
तेरे रुखसार की लाली गुलाबों से भी गहरी है,
तेरी आँखो की गहराई,सागर को भी शरमा दे।
तेरे कंगन की खनखन मेरे मन को अलंकृत करती है ।
तू लगाती है जो बिन्दियां माथे पर,
लगता है ये धरा चाँद से सजती है ।
तेरे आँखो के लहज़े से, मै होश खोने लगता हूँ,
घुल के तेरी सांसो में तेरा होने लगता हू।।