#प्रेम_वियोग_एकस्वप्न
मुझसे दूर जाने का फैसला,
तूमने लिया था,
हाँ, तुम्हें दिखती हैं मुझमें,
हज़ार कमियां,
क्योंकि नही हूँ मैं,
तुम्हारी तरह समझदार,
थोड़ी अल्हड़ हूँ,
और थोड़ी झल्ली सी,
बहुत बचपना है मुझमें,
जो तुम्हें शायद पसंद नही,
क्योंकि तुम्हें तो पसंद हैं।
अनुशासित,
मर्यादित,
साहित्यिक लोग,
जो तुम्हारे पैमाने पर,
फिट बैठते हैं।
छुड़ा लिया अपना हाथ,
बता दिया मुझे मेरी औकात,
और दे दिया मेरे प्रेम को,
अहंकार का नाम,
और तोड़ दिया मेरा गुरूर,
क्योंकि जीतने की तो आदत है तुम्हें,
लो जीत गए तुम,
हार गया मेरा प्रेम,
विशुद्ध प्रेम,
जो सिर्फ तुम्हारे लिए था,
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए।
तुम्हें पता है ?
कि तुम्हारे इस निष्ठुर फैसले से,
जड़त्व हो गयी थी मैं,
किन्तु अगले ही पल,
तुमसे जुदा होने के ख्याल से,
नंगे पांव ही भागी थी,
ना पथरीली राह देखी,
ना परवाह की,
पैरों में चुभते कांटे की,
क्योंकि चाहती थी,
रोक लूँ तुम्हें,
और थाम लूँ तुम्हारा हाथ,
पर तन्द्रा टूट गयी,
और प्रतीत हुआ,
धत्त ये तो बस स्वप्न था।
हाँ मुझे भ्रमित करता हुआ,
बस एक झूठा स्वप्न।
@स्वरचित व मौलिक
शालिनी राय ‘डिम्पल’