प्रेम
प्रेम भक्ति का मुख्य तत्व हैं।
प्रेम ही भक्ति का बीज हैं।
प्रेम ही सभी सद्गुणों का आधार है।
प्रेम नहीं तो संसार में कुछ नहीं सार हैं।
एहसास का भाव, जुड़ने का भाव, विचार आदि सबका सार प्रेम ही हैं।
नहीं तो मात्र अलगाव , बिखराव है।
भक्त प्रेम ,व्यक्ति प्रेम भले निचले तल का कहलाए , प्रेम ही सबका सार हैं।
माँ-बाप,रिश्तों का प्यार ,सबका आधार प्रेम होना चहिए। प्रेम
सिखाया नहीं जाता ये स्वभाव है।
मानव – मानवी का, इंसानियत का ,सद गुण बीज हैं, जिसमें प्रेम प्रस्फुटित होता। जिससे मनुष्य में मानवीय गुणों ,संवेदना पैदा होता है। जो अपने में अनोखा आधार हैं। वहीं तो प्यार हैं ,
प्यार दो लोग के बीच का है।
प्रेम सर्वत्र ,यत्र -तत्र पूजते है। जिससे मनुष्य का संसार
हैं। प्रेम सहायता रूप, प्रेम आगे बढ़ने का नाम हैं।
_ डॉ सीमा कुमारी, बिहार, भागलपुर दिनांक-9-8-021की मौलिक एवं स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं।
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