प्रेम
तांटक छंद – प्रेम
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प्रेम वही होता है लोगों,
जन-जन पर जो राज करे।
चुपके से यह असर छोड़ दे,
कहाँ कभी आवाज करे।
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प्रेम बिना प्रेमी यू तड़पे,
ज्यों मछली बिन पानी की।
इसी प्रेम से बनी कहानी,
कान्हा राधा रानी की।
प्रेम मिले तो क्रूर दुष्ट भी,
कर्मनिष्ठ बन जाते है।
प्रेम बिना भाई-भाई के,
जीवन में ठन जाते है।
जिसके मन में प्रेम समाहित,
खुद को जग का ताज करे।
चुपके से यह असर छोड़ दे,
कहाँ कभी आवाज करे।
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जिसको प्रेम मिले लग जाता,
जग सुधार के कर्मो में।
प्रेम बिना मानव को दिखता,
द्वेष कपट सब धर्मो में।
प्रेम सहित जो करे साधना,
वही बाचता गीता है।
जिसके मन में प्रेम नहीं वह,
कलुष गरल नित पीता है।
प्रेम आज को कल कर देता,
कल को भी यह आज करे।
चुपके से यह असर छोड़ दे,
कहाँ कभी आवाज करे।
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प्रेम अमर है इस दुनिया में,
प्रेम कहाँ कब मरता है।
प्रेम प्रेम को प्रेम लगाकर,
जब-जब धारण करता है।
प्रेम बताता है मानव को,
है कितना वह पानी में।
प्रेम सदा पावन होता है,
सबकी जनम कहानी में।
यही प्रेम मन के भावों को,
मनभावन सुर-साज करे।
चुपके से यह असर छोड़ दे,
कहाँ कभी आवाज करे।
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स्वरचित©®
डिजेन्द्र कुर्रे,”कोहिनूर”
छत्तीसगढ़(भारत)