प्रेम
प्रेम सरल होता नहीं, बहुत कठिन है राह।
करे विसर्जन स्वयं का, जिसको इसकी चाह। ।
पी कर प्याला प्रेम का, जी पाया है कौन।
जिसने इसको पी लिया, हो जाता है मौन।।
बिना बिंधे कलियाँ कभी, हुई गले का हार।
बिना दर्द का फिर कहो, कैसे होगा प्यार।।
जो मिट जाये प्रेम में, खुद को कर दे राखा।
होता कोई एक है, नहीं मिलेगे लाख।।
सत्य सनातन प्रेम है, दिव्य अलौकिक द्वार।
प्रेम सिक्त उर में बहे, निर्झर निर्मल धार।।
प्रेम भाव होता प्रबल, हृदय भरे उल्लास।
तन मन महके इत्र सा, इसका वास सुवास।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली