प्रेम
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पीकर प्याला प्रेम का, मैं तो हुई मलंग।
मतवाली बन डोलती, जैसे उड़े पतंग।। १
दीपक उर में प्रेम की, फिजा हुई सतरंग।
बगिया मेरी रूह की, गई इश्क से रंग।। २
सबसे पावन प्रेम है, कहते ज्ञानी लोग।
जिस तन लागे वो सहे, बड़ा भयानक रोग।। ३
सत्य ललित कोमल कुसुम, प्रेम पंथ अज्ञात।
मधुर भाव सम मधुरिमा, सरस सुभग हर बात।। ४
कठिन मार्ग है प्रेम का, माँगे हर बलिदान।
इस पथ से जो डिग गया, मिले नहीं स्थान।। ५
बिना शर्त इस प्रेम का,होता रहे प्रवाह।
जो शर्तों में बाँधता, मुश्किल है निर्वाह।। ६
सुखद सुगंधित सुमन सम, सृष्टि सृजक श्रृंगार।
सरल समर्पित स्नेह से, सुखद सुधा संसार।। ७
चलो मीत दिन-रात की,सब सरहद के पार।
जहाँ प्रेम पलता रहे, जीवन हो गुलजार।। ८
टूटे धागे प्रेम के, मौसम रूठा जाय।
कभी बँधे जिससे रहे,लम्हें बड़ा सताय ।। ९
हरी-भरी सी यह धरा, ऊपर नील वितान।
जग सूना है प्यार बिन, जलता रेगिस्तान।।१ ०
सूरज संदेशा मिला, हर घाटी मैदान।
जल देना है प्यार का, प्यासी हर चट्टान।।१ १
सोचा समझा कुछ नहीं, कर बैठे हम प्यार।
दवा असर करता नहीं, किया इश्क बीमार ।। १ २
प्रेम एक संजीवनी, जिन्दा रखता आस।
कभी नहीं करता जलन, करता है विश्वास।।१४
महुआ मादकता भरा, मधुकर मदिर सुगंध।
प्रेम पथिक प्यासा फिरे, प्रिय पागल प्रेमांध।। १५
आओ प्रियतम हम रचे, सपनों का संसार।
प्रेम सुधा अंतस भरे, झूमे मस्त बहार।। १ ६
धन्य प्रेम है मीन का, देती जल बिन प्राण।
ये रस का लोभी भ्रमर, रस पी कर अनजान। १ ७
धुआँ दिखाई दे नहीं, लगी हुई है आग।
सहना मुश्किल है बहुत, विरह, प्रेम अनुराग।। १ ८
जुगनू,तितली,फूल फल, कितने रंग हजार।
नजरों में हरदम रहे, जाने किसका प्यार।। १९
? ? ? ? – लक्ष्मी सिंह ? ☺