प्रेम
कई बार कुछ कटु शब्द
जो बेधते हैं हृदय को ,
करते हैं मन को छलनी
बन जाते हैं ऐसा नासूर
जो समय की कई परतों में
दबाकर रखने के बावजूद
आजीवन भरते नहीं
क्योंकि,
वो शब्द , उछाले गए होते हैं
किसी संवेदना शून्य ,कुंठित
हीनग्रंथी से ग्रसित व्यक्ति द्वारा
जिसे किसी स्त्री का श्रृंगार
उसका घर की देहरी से बाहर जाना
उसके पुरुषत्व को ठेस पहुंचाता है,
तो,
सुनो नारी!
अब श्रद्धा की तरह किसी हैवान से
प्रेम करके प्रेम का अपमान मत करो,
प्रेम कोई शर्त कोई बलिदान नहीं मांगता,
उसे चुनना जो तुम्हारी भूख और प्यास
महसूस कर सके, तुम्हें निस्वार्थ प्यार करे,
संवेदनाओं के धरातल पर जो खरा हो,
बस वही तुम्हारे प्रेम का पत्र है।