प्रेम स्मृति
मेरी स्मृतियों में हो तुम,
मैं तुम्हें भुला दूँगा कैसे?
अपनी यादों की तिलांजलि,
बोलो आखिर दूँगा कैसे ?
जो साथ तुम्हारे बीते थे,
वो पल अब भी हैं याद मुझे,
तेरे मेरे जो बीच हुए थे,
मौन-मौन संवाद, मुझे ।
मेरे जीवन के संग्रह में,
वो कविता थी सबसे महान,
जिसको संगीत बनाया था –
तुमने दी उसको मधुर तान ।
स्मृतियों की रेखाओं में से
कुछ रेखा हट जाती हैं ।
पर कुछ रेखाएँ ऐसी हैं ,
जो उभर-उभर फ़िर आती हैं।
तुम भी वैसी ही रेखा हो,
जो अमिट और बलशाली है ।
लेकिन उस रेखा की आगे वाली
पंक्ति अब खाली है ।।
अब नहीं बचा है कुछ भी तो,
अपना सब कुछ तो बीत गया ।
जबसे वो चला गया तबसे
लगता मधुमय संगीत गया ।
आख़िर मेरे कारण ही सब,
पीछे पीछे ही छूट गया ।
जो कभी बनाया था हमने,
लगता है, वो घर, टूट गया ।
मैं रहा निरर्थक, बेबस-सा ,
मैंने ही बंधन तोड़ दिया ।
मैंने ही तुमको बीच भँवर में,
निस्सहाय सा छोड़ दिया ।
फ़िर निष्ठुर-सा बनकर के मैं,
चलता ही चला गया पथ पर ।
तुमको मैं छोड़ युद्घ भूमि में
जा बैठा शांति से रथ पर ।।
तुम छूट गईं, सब छूट गया,
वो चीज़ नहीं फ़िर से आईं,
माना कुछ बचा नहीं था पर‐
यादें तो नहीं छूट पाईं ।।
वो स्मृति फ़िर से आज मुझे,
रह रहकर के तड़पातीं हैं ।
झकझोर डालतीं हैं मुझको,
आँखों से अश्रु बहाती हैं ।।
लेकिन फ़िर भी मैं यादों से ,
बिल्कुल भी घृणा नहीं करता ।
मैं अश्रु बहा लेने से तो
बिल्कुल भी डरा नहीं करता ।।
कुछ और नहीं, बस यादें हैं,
वो भी विनष्ट हो जाएंगी ।
तो फ़िर कैसे वो मुझे तुम्हारी
मधुर याद दिलवायेंगी ।।
सब नष्ट हो गया, तो क्या है,
स्मृतियों को तो रहने दो ।
मिलने का सुख ना मिल पाया,
बिछुड़न का दुःख ही सहने दो ।।