प्रेम सीमा
मनहरण घनाक्षरी
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**** प्रेम -सीमा***
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प्रेम की नहीं है सीमा,
कोई चाहे न हो बीमा,
शत्रु से वैर नहीं,
होता जब भरोसा है।
बेजुबान होते चाहे,
जानवर प्यारे सारे,
गले भी है मिलते,
स्नेह बड़ा परोसा है।
दुश्मनी को भूल कर,
ममता में झूल कर,
चुंबनों के हार से,
रहता नहीं प्यासा है।
मनसीरत मानता,
है सबकुछ जानता,
प्रीत बिना कोई भी,
जगत में दिलासा है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)