प्रेम महज
प्रेम महज
एक आलिंगन नहीं
चुम्बन भी नहीं
ये कहना भी
प्रेम नही है
कि मै
तुमसे करता हूँ प्रेम
प्रेम तो
बस एक स्मृति है
जो है बसती है
हमारे भीतर
उन लम्हों की
स्मृति के रूप में
जब साथ बैठकर
हमने चाय पी थी कभी
साझा किया था
अपने सुख-दुख को
प्रेम महज
स्मृति में ही नही रहता
दर्द में भी
फलता फूलता है
हर टीस के साथ
प्रेम यदि कहीं जीवित है
तो बस एक ख़्वाब में.
प्रेम दर हकीकत
अमर है
क्षणभंगुर नही
प्रेम को जीना है तो
दर्द को पालना होगा
ख्वाबों में जीना मरना होगा
शरीर के मोहपाश से
निकल कर बाहर
रूह से मिलना होगा
हिमांशु Kulshrestha