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16 Sep 2024 · 1 min read

प्रेम महज

प्रेम महज
एक आलिंगन नहीं
चुम्बन भी नहीं
ये कहना भी
प्रेम नही है
कि मै
तुमसे करता हूँ प्रेम
प्रेम तो
बस एक स्मृति है
जो है बसती है
हमारे भीतर
उन लम्हों की
स्मृति के रूप में
जब साथ बैठकर
हमने चाय पी थी कभी
साझा किया था
अपने सुख-दुख को
प्रेम महज
स्मृति में ही नही रहता
दर्द में भी
फलता फूलता है
हर टीस के साथ
प्रेम यदि कहीं जीवित है
तो बस एक ख़्वाब में.
प्रेम दर हकीकत
अमर है
क्षणभंगुर नही
प्रेम को जीना है तो
दर्द को पालना होगा
ख्वाबों में जीना मरना होगा
शरीर के मोहपाश से
निकल कर बाहर
रूह से मिलना होगा

हिमांशु Kulshrestha

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