प्रेम बहुत दिनों बाद
बहुत दिनों बाद,
खोया-सा मन,
प्रेम निमग्न होने,
जागा है आज;
चलो तितलियों से
बातें करते हैं,
कलियों फूलों संग
गुनगुनाते हैं,
भौंरों से चुराकर,
बागों की ख़ुशबू लेते हैं,
नीम के तले,
ठंडी छांव में लेटे,
मीठी बातें करते हैं।
बहुत दिनों बाद,
खुले आसमां के नीचे
हाथों में उड़ती
रंगीं चुनरिया,
खुले केश,
पुरवैया पवन,
तुम हरी घास पर
कोमल नंगे पांव,
गुलाबों फूलों में,
यत्र-तत्र छुप जाओ;
मैं तुम्हें खोजूँ पकड़ूँ
तुम कभी मिलो,
कभी गायब हो जाओ।
बहुत दिनों बाद
चौखट पे दस्तक दी है
सावन की बूंदों ने,
भीगेगी सौंधी मिट्टी
तृप्त होगा सूरज
दाह-दाह को शीत,
प्यास-प्यास को पानी,
वृक्ष-वृक्ष, तृण-तृण की,
जड़ों, कोशिकाओं को
मिलेगी शीतलता।
बहुत दिनों बाद,
आशाएं जागी हैं,
उसी निश्चल प्रेम की,
जो बेलपत्र चढ़ाते,
कुशा तृण बांधते,
तुलसी के पौध की
धूप बाती से,
परिक्रमा करते,
आंगन में गाय को,
गौ ग्रास कराते,
उगते लालिम सूरज को,
जल चढ़ाते,
अनुभूति होती है।
-✍️ श्रीधर.