प्रेम-बंधन।
प्रेम-बंधन एक बंधन है ऐसा,
जो बंध कर भी निर्बंध है,
सम्बंध की प्रगाढ़ता बंधन में कहाँ,
कि उन्मुक्तता में ही आनंद है,
निश्चलता की डोरी से बंधा हो जो,
वो प्रेम ही परम आनंद है,
निर्मलता की ना हो सीमा जिसमें,
प्रेम-बंधन एक अनूठा अनुबंध है,
प्रेम-बंधन तो ऐसा बंधन है जिसमें,
ना स्वार्थ है कोई ना प्रतिबंध है,
प्रेम की आभा क्या कहे ये “अंबर”,
हर रूप ही जिसका स्वच्छंद है।
कवि-अंबर श्रीवास्तव।