प्रेम, प्रीत
(प्रेम🌹प्रीत का) रुप🌹🌹( समीक्षार्थ)
बदला मोह को प्रेम में ,राधे को समझाई प्रीत|
रास रचाने बरसाना, चले द्वारिकाधीश||
प्रेम ही जग में समाया ,यह ईश की माया |
मोहपाश में बंधा जीव ,भेद यही भरमाया ||
मीरा पी विष का प्याला,
अमर हुई जहर से|
प्रेम दीवानी कहायी,प्रीत हुई नटवर से||
तुझसे है प्रीत पुरानी, प्रभु तुम चंदन हम पानीं|
तज दे बंधन मोह का ,कहते सारे ज्ञानी||
प्रीत की रीत निभानें ,जगत रहस्य समझानें |
नारि रूप धरा मोहन नें
राधा को समझानें ||
कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ