Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Apr 2020 · 3 min read

प्रेम प्रतीक्षा भाग 3

प्रेम- प्रतीक्षा
भाग-3
सुबह जल्दीउठ कर सुखजीत नहा धोकर ,नाश्ता कर तैयार हो कर अपनी साईकिल पर सवार हो दोस्तों संंग विद्यालय में समय से पहले ही चला जाता था। अमित,सुमित,नीरज,अजय कुलदीफ ये सभी एक ही मोहल्ले से स्कूल आते थे और एक ही कक्षा के सहपाठी होने के नाते सभी में अच्छी पटती थी और कौतूहलवश परस्पर एक दूसरे को छेड़ते रहते थे और किशोरावस्था के प्रथम सोपान के प्रभाव के कारण एक दूसृरे का नाम किसी ना किसी लड़की के साथ जोड़ कर खूब हंसी ठिठोलियां करते थे।वास्तव में बहुत ही आमोद प्रमोद और मस्ती भरे दिन थे।सुखजीत की सभी के साथ बनती थी और अभी तक उसका किसी के साथ नाम भी नहीं जोड़ा गया था, क्योंकि कक्षा का मॉनीटर होने के कारण उसकी जरूरत भी पढाई में सभी को पड़ती थीं।
उधर अंजलि का आरम्भ में तो विद्यालय में मन नहीं लगा था, लेकिन धीरे धीरे कक्षा की अन्य लड़कियों के साथ मित्रता होने के कारण उसका मन विद्यालय में लग गया था।नेहा और विजया से उसकी खूब बनती थी और वह विजया के साथ पहली पंक्ति के प्रथम बैंच पर बैठती थी,जबकि सुखजीत द्वितीय पंक्ति में दूसरे बैंच पर अमित के साथ बैठता था।
आंजलि भी पढाई में बहुत अच्छी थी और उसकी सीधी प्रतिस्पर्धा सुखजीत के साथ थी,लेकिन प्रत्येक परीक्षा उपरा़ंत वह सुखजीत के बाद द्वितीय स्थान पर रहती।लड़कियों में अव्वल होने के कारण उसको लड़कियों का मॉनीटर बनाया गया था और इसी कारण सुखजीत और अंजलि में कामवश बातचीत होती रहती थीं ।अंजलि विद्यालय में होने वाले सांस्कृतिक कार्यालय में प्रतिभागिता करती रहती थी।जहाँ वह एक अच्छी हरियाणवी नृत्यांगना थी, वहीं सुखजीत एख अच्छा गायक……।अंजलि चंचल और नटखट स्वभावी की लड़की थी और सुखजीत शर्मालु स्वभाव का लडका था।दोनों का विद्यालय में नाम था।
अंजलि के पिता सरकारु सेवा में सेवारत थे और वह दो भाइयों की मंझली बहन थी।उसकी माता एक गृहिणी थी। अंजलि को घर में सभी बहुत प्यार करते थे। सुखजीत की पिछली गली में वह.परिवार सहित रहती थी और उसके पिता का स्वभाव थोड़ा सख्त मिजाज का था।घर की स्थिति अच्छी होने के कारण उसका घर दो मंजिला था और नये ढंग से बना हुआ था।अ
ग्याररहवीं कक्षा के वार्षिक परीक्षाएं नजदीक थी।कई बार कुछ पूछने के बहाने सुखजीत के पिस आ जिती थी, लेकिन दोनों में स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा थी।इसी बीच कक्षा के लड़के लड़कियों ने दबी आवाज में उन दोनों का नाम जोड़ना शुरू कर दिया था। अंजलि का स्वभाव में चतुरता और चंचलता होने के कारण उसका भेद नहीं लग पा रहा था,लेकिन उसकी मंद मंद मधुर मुस्कराहट किसी को भी आकर्षित कर देने वाली थी और उसकी घूंघरूओं सी खनकती खिवलखिलाती हंसी किसी को भी घायल.कर देने वाली थी।उसके चेहरे पर सुंदरता का एक अलग ही तेज था ,जो हर किसी को अपनी और खींच लेता था।
सुखजीत एक साधारण सा दिखने वाला असाधारण प्रतीभा वाला विद्यार्थी था और उसकी तरफ कक्षा कु एक लड़की आकर्षित थी, लेखिका उसके मन में कुछ नहीं था।लेकिन सुखजीत के मन में अंजलि के प्रति खिंचाव था,जो कि कई बार उसके चेहरे पर भी आ जाता था।लेकिन मन का वहम समझ कर वह इस भाव.को छिपाने कि असफल नाटक करता था।क्योंकि प्रेम और मुश्क छिपाए नहीं छिपते,किसी ना किसी को किसी ना किसी समय पर कीसु ना किसी स्थिति में पता लग ही जाती है।और इसलिये कुछैक विद्यार्थियों ने उन दोनों का नाम जोड़ दिया था.जिसकी उन दोनों को कानों कान तक खबर नहीं थी।
एक शाम अमित जो कि सुखजीत का घनिष्ठ मित्र था,उसके घर आया।दोनों में कुछ देर तक इधर उधर की सामान्य बातचित होने के बाद लड़के लड़कियों का जिक्र छिड़ पड़ा कि कौन किसके साथ थी और कौन किसको पसंद करता था।यकायक अमित ने सीधे ही सुखजीत से पूछ लिया कि उसके और अंजलि के बीच क्या खिचड़ी पक रही थी।सुखजीत ने साफ मना कर दिया, लेकिन अमित के ज्यादा जोर देनै पर सुखजीत ने अपने प्रेम की किताब के पन्ने खोल दिए और भावुकता में बहकर उसने अमित को बता ही दिया कि यार अंजलि का तो पता नहीं लेकिन वह खुद मन ही मन अंजलि को बहुत ज्यादा दिल से चाहता था और उसको रात को नींद में उसके ख्वाब भी आते थे और.उसके मन के ख्यालों में उसी का ही सुंदर मुखड़ा छाया रहता था और फिर यह सब कहक उसने अमित का हाथ पकड़ लिया और अमित सुखजीत के मुख से यह सब सुनकर जोर जोर सज हंसने लगा था।

कहानी जारी….।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल(

Language: Hindi
380 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ढलता वक्त
ढलता वक्त
प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
चीजें खुद से नहीं होती, उन्हें करना पड़ता है,
चीजें खुद से नहीं होती, उन्हें करना पड़ता है,
Sunil Maheshwari
कुछ ऐसे भी लोग कमाए हैं मैंने ,
कुछ ऐसे भी लोग कमाए हैं मैंने ,
Ashish Morya
फूल यूहीं खिला नहीं करते कलियों में बीज को दफ़्न होना पड़ता
फूल यूहीं खिला नहीं करते कलियों में बीज को दफ़्न होना पड़ता
Lokesh Sharma
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
वादा निभाना
वादा निभाना
surenderpal vaidya
" नौलखा "
Dr. Kishan tandon kranti
मैं हू बेटा तेरा तूही माँ है मेरी
मैं हू बेटा तेरा तूही माँ है मेरी
Basant Bhagawan Roy
समय ⏳🕛⏱️
समय ⏳🕛⏱️
डॉ० रोहित कौशिक
कोई चाहे तो पता पाए, मेरे दिल का भी
कोई चाहे तो पता पाए, मेरे दिल का भी
Shweta Soni
क्या देखा
क्या देखा
Ajay Mishra
निर्भय दिल को चैन आ जाने दो।
निर्भय दिल को चैन आ जाने दो।
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
उम्मीद खुद से करेंगे तो ये
उम्मीद खुद से करेंगे तो ये
Dr fauzia Naseem shad
मन   पायेगा   कब   विश्रांति।
मन पायेगा कब विश्रांति।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
मैं सदा चलता रहूंगा,
मैं सदा चलता रहूंगा,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
Best Preschool Franchise in India
Best Preschool Franchise in India
Alphabetz
प्रकृति सुर और संगीत
प्रकृति सुर और संगीत
Ritu Asooja
सदा दे रहे
सदा दे रहे
अंसार एटवी
Echoes By The Harbour
Echoes By The Harbour
Vedha Singh
बहुत कुछ जान के जाना है तुमको, बहुत कुछ समझ के पहचाना है तुम
बहुत कुछ जान के जाना है तुमको, बहुत कुछ समझ के पहचाना है तुम
पूर्वार्थ
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
मजबूरन पैसे के खातिर तन यौवन बिकते देखा।
मजबूरन पैसे के खातिर तन यौवन बिकते देखा।
सत्य कुमार प्रेमी
मनमुटाव अच्छा नहीं,
मनमुटाव अच्छा नहीं,
sushil sarna
3378⚘ *पूर्णिका* ⚘
3378⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
कमल खिल चुका है ,
कमल खिल चुका है ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
रामपुर के गौरवशाली व्यक्तित्व
रामपुर के गौरवशाली व्यक्तित्व
Ravi Prakash
।।
।।
*प्रणय*
आज़ कल के बनावटी रिश्तों को आज़ाद रहने दो
आज़ कल के बनावटी रिश्तों को आज़ाद रहने दो
Sonam Puneet Dubey
बिखरी बिखरी जुल्फे
बिखरी बिखरी जुल्फे
Khaimsingh Saini
कर्म -पथ से ना डिगे वह आर्य है।
कर्म -पथ से ना डिगे वह आर्य है।
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
Loading...