प्रेम प्रतीक्षा भाग 3
प्रेम- प्रतीक्षा
भाग-3
सुबह जल्दीउठ कर सुखजीत नहा धोकर ,नाश्ता कर तैयार हो कर अपनी साईकिल पर सवार हो दोस्तों संंग विद्यालय में समय से पहले ही चला जाता था। अमित,सुमित,नीरज,अजय कुलदीफ ये सभी एक ही मोहल्ले से स्कूल आते थे और एक ही कक्षा के सहपाठी होने के नाते सभी में अच्छी पटती थी और कौतूहलवश परस्पर एक दूसरे को छेड़ते रहते थे और किशोरावस्था के प्रथम सोपान के प्रभाव के कारण एक दूसृरे का नाम किसी ना किसी लड़की के साथ जोड़ कर खूब हंसी ठिठोलियां करते थे।वास्तव में बहुत ही आमोद प्रमोद और मस्ती भरे दिन थे।सुखजीत की सभी के साथ बनती थी और अभी तक उसका किसी के साथ नाम भी नहीं जोड़ा गया था, क्योंकि कक्षा का मॉनीटर होने के कारण उसकी जरूरत भी पढाई में सभी को पड़ती थीं।
उधर अंजलि का आरम्भ में तो विद्यालय में मन नहीं लगा था, लेकिन धीरे धीरे कक्षा की अन्य लड़कियों के साथ मित्रता होने के कारण उसका मन विद्यालय में लग गया था।नेहा और विजया से उसकी खूब बनती थी और वह विजया के साथ पहली पंक्ति के प्रथम बैंच पर बैठती थी,जबकि सुखजीत द्वितीय पंक्ति में दूसरे बैंच पर अमित के साथ बैठता था।
आंजलि भी पढाई में बहुत अच्छी थी और उसकी सीधी प्रतिस्पर्धा सुखजीत के साथ थी,लेकिन प्रत्येक परीक्षा उपरा़ंत वह सुखजीत के बाद द्वितीय स्थान पर रहती।लड़कियों में अव्वल होने के कारण उसको लड़कियों का मॉनीटर बनाया गया था और इसी कारण सुखजीत और अंजलि में कामवश बातचीत होती रहती थीं ।अंजलि विद्यालय में होने वाले सांस्कृतिक कार्यालय में प्रतिभागिता करती रहती थी।जहाँ वह एक अच्छी हरियाणवी नृत्यांगना थी, वहीं सुखजीत एख अच्छा गायक……।अंजलि चंचल और नटखट स्वभावी की लड़की थी और सुखजीत शर्मालु स्वभाव का लडका था।दोनों का विद्यालय में नाम था।
अंजलि के पिता सरकारु सेवा में सेवारत थे और वह दो भाइयों की मंझली बहन थी।उसकी माता एक गृहिणी थी। अंजलि को घर में सभी बहुत प्यार करते थे। सुखजीत की पिछली गली में वह.परिवार सहित रहती थी और उसके पिता का स्वभाव थोड़ा सख्त मिजाज का था।घर की स्थिति अच्छी होने के कारण उसका घर दो मंजिला था और नये ढंग से बना हुआ था।अ
ग्याररहवीं कक्षा के वार्षिक परीक्षाएं नजदीक थी।कई बार कुछ पूछने के बहाने सुखजीत के पिस आ जिती थी, लेकिन दोनों में स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा थी।इसी बीच कक्षा के लड़के लड़कियों ने दबी आवाज में उन दोनों का नाम जोड़ना शुरू कर दिया था। अंजलि का स्वभाव में चतुरता और चंचलता होने के कारण उसका भेद नहीं लग पा रहा था,लेकिन उसकी मंद मंद मधुर मुस्कराहट किसी को भी आकर्षित कर देने वाली थी और उसकी घूंघरूओं सी खनकती खिवलखिलाती हंसी किसी को भी घायल.कर देने वाली थी।उसके चेहरे पर सुंदरता का एक अलग ही तेज था ,जो हर किसी को अपनी और खींच लेता था।
सुखजीत एक साधारण सा दिखने वाला असाधारण प्रतीभा वाला विद्यार्थी था और उसकी तरफ कक्षा कु एक लड़की आकर्षित थी, लेखिका उसके मन में कुछ नहीं था।लेकिन सुखजीत के मन में अंजलि के प्रति खिंचाव था,जो कि कई बार उसके चेहरे पर भी आ जाता था।लेकिन मन का वहम समझ कर वह इस भाव.को छिपाने कि असफल नाटक करता था।क्योंकि प्रेम और मुश्क छिपाए नहीं छिपते,किसी ना किसी को किसी ना किसी समय पर कीसु ना किसी स्थिति में पता लग ही जाती है।और इसलिये कुछैक विद्यार्थियों ने उन दोनों का नाम जोड़ दिया था.जिसकी उन दोनों को कानों कान तक खबर नहीं थी।
एक शाम अमित जो कि सुखजीत का घनिष्ठ मित्र था,उसके घर आया।दोनों में कुछ देर तक इधर उधर की सामान्य बातचित होने के बाद लड़के लड़कियों का जिक्र छिड़ पड़ा कि कौन किसके साथ थी और कौन किसको पसंद करता था।यकायक अमित ने सीधे ही सुखजीत से पूछ लिया कि उसके और अंजलि के बीच क्या खिचड़ी पक रही थी।सुखजीत ने साफ मना कर दिया, लेकिन अमित के ज्यादा जोर देनै पर सुखजीत ने अपने प्रेम की किताब के पन्ने खोल दिए और भावुकता में बहकर उसने अमित को बता ही दिया कि यार अंजलि का तो पता नहीं लेकिन वह खुद मन ही मन अंजलि को बहुत ज्यादा दिल से चाहता था और उसको रात को नींद में उसके ख्वाब भी आते थे और.उसके मन के ख्यालों में उसी का ही सुंदर मुखड़ा छाया रहता था और फिर यह सब कहक उसने अमित का हाथ पकड़ लिया और अमित सुखजीत के मुख से यह सब सुनकर जोर जोर सज हंसने लगा था।
कहानी जारी….।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल(