प्रेम पर दोहे
कोहिनूर की आभा
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मानव मत रखना कभी,संबंधों में भेद।
नाव डूबो देता सदा,एक तुच्छ सा छेद।।
मानवता में हो नहीं , जब तक पावन प्रेम।
तब तक कैसे मिल सके,सुख के सुरभित हेम।।
प्रेम जहाँ होता नहीं , वहीं पनपते द्वेष।
मानव-मानव को छले,धरप्रिय जन का भेष।।
प्रेम बिना उपजे सभी , मन मंदिर में शूल।
इसके बिन संसार का,निश्चित नाश समूल।।
प्रेम सदा संसार में , सत्य समर्पण सार।
मानवता के भाव का,यही सुखद आधार।।
जीवन में सुखसार का,प्रेम खिलाए फूल।
इसके बिन जीवन बने,कठिन कलुष प्रतिकूल।।
कोहिनूर नित ही करो,निज जीवन से प्रेम।
तभी सफलता मिल सके,जन्म बने सुख हेम।।
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स्वरचित©®
डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
छत्तीसगढ़(भारत)