प्रेम दीपक
गीत
प्रेम दीपक हर हृदय में अनवरत जलता रहे।
हर दिवाली पर मधुर उपहार यह मिलता रहे।
दुर्भावना की हार हो सद्भावना की जीत हो।
द्वेष मन का नष्ट हो सब प्राणियों में प्रीत हो।
जगमगाती संगमरमर की हवेली हो मगर-
झोपड़ी के द्वार पर भी फुलझड़ी मनमीत हो।
हर हृदय में चिर सुगन्धित पुष्प यह खिलता रहे।
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ज़िन्दगी फुटपाथ की भी मुस्कुराए तो जरा।
पौध भी इंसानियत का लहलहाए तो जरा।
दर्द थोड़ा बाँट लें हम साथ चलकर दो कदम-
आँख में उनकी खुशी भी झिलमिलाए तो जरा।
भाव यह उत्कृष्टतम उर गेह में पलता रहे।
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दीप-बाती की तरह प्रिय शाश्वत अनुबंध हो।
पुष्प और मकरन्द जैसा आपसी संबंध हो।
ज्योति यह अविचल हृदय को नित्य ज्योतिर्मय करे-
प्रीत संग विश्वास का जो शक्तिमय तटबंध हो।
कारवाँ ” कृष्णा ” यही अविराम हो चलता रहे।
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कृष्ण कुमार श्रीवास्तव
“कृष्णा”
हाटा,कुशीनगर, उत्तर प्रदेश